लघुकथा

वृद्धाश्रम

उस घर से आये दिन सास बहू के जोर जोर से झगड़ने की आवाजें आती थी । बहू अपनी मां की सीख के मुताबिक सास को घर से बाहर निकलवाने पर आमादा थी । अंततः सास बहू के रोज रोज के झगड़े से आजिज आ चुके बेटे ने बहू की जिद्द के आगे हथियार डालते हुए माँ को वृद्धाश्रम में रहने के लिए मना लिया । माताजी के वृद्धाश्रम चले जाने के बाद उत्साहित बहू यह खुशखबरी अपनी माताजी को देने मैके जा पहुंची । घर में प्रवेश करते ही अपनी नाक सिकोड़ते हुए उसकी भाभी ने उसका स्वागत किया । उसकी तरफ ध्यान न देते हुए बहू ने पुछा ” भाभी ! माँ कहाँ है ? नहीं दिख रही हैं । ”
भाभी का जवाब था ” तुम्हारे भैया ने तुम्हें बताया नहीं ? वो तो पिछले सप्ताह से ही वृद्धाश्रम में रहती हैं । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

6 thoughts on “वृद्धाश्रम

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी और रोचक लघुकथा. जैसे को तैसा !

    • राजकुमार कांदु

      बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय !

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, निरंतर निखार की ओर प्रगति करती आपकी लेखनी से यथार्थ को दर्शाती एक और खूबसूरत रचना मन मोह गई. अत्यंत मार्मिक, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय बहनजी ! अति सुंदर प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    tit for tat , राजकुमार भाई ! इस को ही कहते हैं, जितनी जोर से बाल दीवार पर टकराओगे उतने जोर से वोह आप की तरफ आ सकती है . सिखिअदायक लघु कथा .

    • राजकुमार कांदु

      सही कहा आपने आदरणीय भाईसाहब ! इसी को कहते हैं जैसे को तैसा कुछ बहुएं तो कभी कभी सास भी बहुयों पर ज्यादती करते वक्त भुल जाती हैं कि उनके साथ भी ऐसा हो सकता है । सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

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