कविता

सरकारी स्कूल

चलो आज तुम्हें एक सरकारी स्कूल
की कहानी सुनाता हूं
नंगे पैर ,बदन पर मां के हाथों से
सिला हुआ आधा पजामा
एक बनियान जिसके छेद
घर की आर्थिक स्थिति को बयान करते हैं
एक बच्चा रोज जाता है
घर के हालात , पिता की जिंदगी के
साथ जद्दोजहद वह रोज देखता है
फिर भी पूरे होश में
पूरे जोश में आता है स्कूल में
निर्माणकर्ता देश के अपना कर्तव्य पूरा करते
देश प्रेम की भावना बच्चे में कूट-कूट कर भरते
सरकार से मिलने वाली सुविधाएं
इक्का दुक्का पहुंचती हैं उसके घर तक
मुसीबत की काली घटाओं के बीच ,धूल
आंधी ,तूफान ,सूखा इन्हीं के सामने
सीना तानकर वह बड़ा होता है
युवा होकर भुजाओं में शक्ति का प्रवाह होता है
शरीर ताकतवर होने लगता है
तब गुरुजनों की दी शिक्षा काम आती है
तन मन धन से वह देश की सेवा में लग जाता है
हां एक नेता जी ने कहा था
” इस देश को 12वीं पास बचाते हैं ”
याद दिलाना चाहूंगा
ये हैं जो देश बचाते हैं
जो मिट्टी से प्रेम करते हैं
क्योंकि इन्होंने देखा होता है
मिट्टी का एक एक कण
ऐसे ही ना जाने कितनी कहानियां
मेरे देश के सरकारी स्कूलों में हर रोज पनपती हैं
खिलखिलाती हैं ,हंसती हैं
परिस्थितियों से लड़ते हुए
अपने अंजाम तक पहुंचती हैं
यह कहानी थी एक सरकारी स्कूल की
जिसका मैं भी एक हिस्सा रहा हूं

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733