कविता

पुरूषार्थ के शान में

ये जो तुम अपने
पुरूषार्थ के शान मे रहते हो
और गली गली भेड़ियो के भॉती
घुमते फिरते हो कि
कही कोई मिल जाये
बच्ची हो या बूढ़ी
उसीपर अपने पुरूषार्थ का रौब दिखाकर
अपना मूँह काला किये फिरते हो
और हॉ घुमोगें भी क्यो नही
तुम्हे तो वो आजादी ही मिली है
क्योकि कानून का सहारा लो तो
नाबालिक घोषित हो जाते हो
और यदि खुद को मजबूत बनाकर लड़ो तो
खुद समाज के नजरो मे
गलत साबित हो जाते हैं
फिर तो लाजिमी है
तुम आसानी से रेप पर रेप
करते फिरोगे
तो सुनो धिक्कार है ऐसे पुरूषार्थ का
लानत है तुम्हारे पुरूष होने पर ।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४