लघुकथा

शॉपिंग

“वाओ…. देखो अवंतिका यह हैंडबैग कितना सुंदर है।” निशी ने खुशी से उछलते हुए कहा।
अवंतिका कुछ देखना नहीं चाहती थी। देखने का मतलब था खरीदने के लिए ललचा जाना। यदि वह जानती कि निशी उसे यहाँ लाने वाली है तो आती ही नहीं।
शॉपिंग अवंतिका की कमज़ोरी बन गई थी। ऑनलाइन या शॉपिंग मॉल से कुछ न कुछ खरीदती ही रहती थी। पिछले महीने जब मम्मी उसके पास रहने के लिए आई थीं। तब उसकी इस आदत पर उन्होंने समझाया था।
“बेटा तुम अपने पैरों पर खड़ी हो। अच्छा कमाती हो। उसे खर्च करने का भी उसे पूरा हक है। पर मैंने महसूस किया है कि तुम बिना सोंचे समझे खर्च करती हो। पैसे को बचाओ। तुम्हारे ही काम आएगा।”
मम्मी की बात उसे समझ आ गई थी। उसने अपने फोन से सारी ऑनलाइन शॉपिंग एप्स डिलीट कर दीं। मॉल में जाना छोड़ दिया। पिछले एक महाने में उसने कुछ नहीं खरीदा था। लेकिन आज फिर वह अपनी कमज़ोरी के सामने थी।
अवंतिका ने नज़र उठा कर देखा सचमुच हैंडबैग बहुत सुंदर था। उसका मन ललचा गया। वह उसे उठा कर देखने वाली थी लेकिन उसने खुद को नियंत्रित कर लिया।
“तुम्हें खरीदना हो तो ले लो। मुझे आज कुछ नहीं खरीदना।”

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है