गज़ल
ये माना कि शब का अँधेरा घना था,
मगर राह में हमको रूकना मना था
धुँधले थे कुछ आसमां में सितारे,
और चाँद भी थोड़ा सा अनमना था
बहुत तेजी से आगे निकला था कोई,
जो गौर से देखा मेरा बचपना था
बहुत साफ थे हाथ तो उसके लेकिन,
आस्तीं का खंजर लहू से सना था
ना जाने वो क्यों डर गया यूँ अचानक,
दिखाया उसे मैंने बस आईना था
पड़े हैं वो सब आज मिट्टी में देखो,
सर जिनका कल तक अकड़ से तना था
मैं ना सीख पाया इस दुनिया के रंग-ढंग,
किसी और मिट्टी का शायद बना था
— भरत मल्होत्रा
ना जाने वो क्यों डर गया यूँ अचानक,
दिखाया उसे मैंने बस आईना था,
bahut sunder