गज़ल
खाक होने दे बदन ये धूप में, साया ना कर,
हाल मेरा पूछकर वक्त अपना तू ज़ाया ना कर,
=============================
गर छुपाना चाहता है दुश्मनों से राज़ सारे,
बात कोई दोस्तों को अपनी बतलाया ना कर,
============================
मैं सुधर जाऊँगा तो फिर कौन पूछेगा तुझे,
जैसा हूँ रहने दे मुझको ज्यादा समझाया ना कर,
============================
वक्त कितना भी हो मुश्किल बीत जाएगा ए दोस्त,
हौसला रख तू ज़रा सा इतना घबराया ना कर,
============================
उठ गए तो पलटकर रख देंगे हम सारा निज़ाम,
सोया ही रहने दे यूँ शेरों को उकसाया ना कर,
============================
नफरत मिली इतनी कि अब डरने लगा हूँ प्यार से
ज़ख्मों को मेरे नर्म हाथों से सहलाया ना कर,
============================
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।