लघुकथा

मौका

शेठ जमनादास शहर के जानेमाने सर्राफा व्यापारी थे । उन्होंने अपने शोरूम पर तैनात नए दरबान को हटाकर उसकी जगह ‘कम्मो ‘ को काम पर रख लिया था । सुंदर व शालीन भारतीय परिधान में सजी धजी ‘ कम्मो ‘ जब अपने दोनों हाथ जोड़कर ग्राहकों का अभिवादन करते हुए उनके लिए शोरूम का दरवाजा खोलती तो उनकी खुशी देखते ही बनती थी । ‘ कम्मो ‘ एक किन्नर थी । शोरूम पर कई दफा भीख मांगने के लिए आई हुई कम्मो की शालीनता व शराफत देखकर शेठ जी बहुत प्रभावित हुए थे और अपने मैनेजर की शोरूम की सुरक्षा व प्रतिष्ठा जैसी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए शेठ जी ने उसकी मदद के लिए ही उसे नौकरी का ऑफर दे दिया ।
मैनेजर को समझाते हुए शेठ जी ने कहा ” बदुकधारी सुरक्षा गार्डों की तैनाती के बावजूद आये दिन दुकानों व बैंकों के लुटे जाने की खबरें आती रहती हैं ऐसे में समाज के इन दबे कुचले व उपेक्षित लोगों को एक मौका दिए जाने में क्या बुराई है ? और देखो वह कितनी खुश है । हमारे ग्राहक भी एक किन्नर का अनोखा रूप देखकर कितने खुश व प्रभावित हैं । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “मौका

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राजकुमार भाई , अब पुरातन धारणाओं को ख़तम होना चाहिए . और सभी को बराबर के हक्क मिलने चाहियें . इस कहानी से किसी एक किन्नर को भी कोई अवसर मिल जाए तो आप की बड़ी उप्लाभ्दी है .

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय भाईसाहब ! आपने बिल्कुल सही कहा है कि अब पुरातन धारणाओं को खत्म करके सबको बराबरी का हक मिलना चाहिए । बेहद सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, आपकी निखरती कलम की तरह किन्नर को मुख्यधारा में जोड़ने का सेठ जमनालाल का प्रयास सराहनीय लगा. अत्यंत समसामयिक, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय बहनजी ! बेहद उत्साहजनक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

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