भाषा-साहित्य

लेख-: साहित्य का कूड़ा

हमारा समाजिक वातावरण दिनों दिन बदलता जा रहा है इसी के साथ-साथ लोगों की सोच भी बदलती जा रही है। इसी कड़ी में कहीं न कहीं समाजिक उत्थान के साथ-साथ समाजिक पतन भी देखा जा चुका है। शायद उत्थान और पतन का कारण पारंपरिक रुढिवादिता अंधविश्वासों का प्रभाव है। भारतीय समाज में कई धर्म कई जातियाँ होने के बावजूद भी कानूनी तौर पर एकता का मिसाल कहा जाता है लेकिन वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं है। सब आपस में जाती को लेकर धर्म को लेकर बिखरें हुए हैं। इसी समाज में साहित्य का पदार्पण होता है और कहा भी जाता है कि “साहित्य समाज का दर्पण होता है।” वास्तव में यह जिसने भी कहाँ है, बिलकुल सही और सटीक कहा है। क्योंकि साहित्य का सृजन सामाजिक वातावरण पर ही निर्भर करता है।

रही बात साहित्य,समाज और दर्पण की,अगर दर्पण के सामने हम सब या आप खड़े होते हैं तो हम सबके बाहरी हावभाव में गुण और दोष दोनों दिखाई देते हैं लेकिन साहित्य एक ऐसा दर्पण है, जिनमें बाहरी गुण के साथ-साथ आंतरिक गुण भी साफ-साफ दिखाई देता है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि साहित्य रूपी दर्पण में समाज की बुराइयों को दिखाने की क्षमता नहीं रह गई है। समाज को दिशा प्रदान करने के लिए आज के समय में देश भर क्या विदेशों में भी साहित्यिक संस्थाओं का संचालन हो रहा है। हिन्दी प्रचार प्रसार के बहाने अर्थोपार्जन की प्रकिया हमारे साहित्यिक संस्थाओं के द्वारा की जा रही है। इन्हीं संस्थानों के संचालक महोदय पक्षपातपूर्ण रवैया जोर-शोर से अपना रहे हैं। इसी वजह से ‘साहित्य समाज का दर्पण होता है’ यह कथन आज के समय में झूठ साबित हो रहा है।

जैसे-जैसे साहित्य का दायरा बढता जा रहा है वैसे-वैसे बहुत से साहित्यकार भाइयों में अहम की भावना बढती जा रही है। इसे साहित्य के बढते हुए दायरे का प्रभाव कहें या हर लोगों को साहित्य के क्षेत्र में उच्च श्रेणी के पद की लोलुपता कहें। साहित्य की दुनिया में साहित्य को आगे बढाना कम तथा अपने को लोगों में चर्चित करना ज्यादा पसंद आ रहा है। यही कारण साहित्य को पीछे की ओर धकेल रहा है। साहित्य जैसे-जैसे आगे की ओर अग्रसर है वैसे-वैसे अपने अस्तित्व को धूमिल करता जा रहा है। साहित्य उस जल के समान है जो नदियों में बहता है धरातल के स्थिति को परखते हुए अपने आप आगे की ओर बढता है अगर इसमें कोई बाधक बनता है तो दुष्परिणाम को आमंत्रित करता है और झेलने पर मजबूर हो जाता है। इसलिए साहित्य को अपने हाथों में नहीं अपितु जन-जन के हाथों में देना होगा तभी हमारा साहित्य असीम ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है।

अप्रत्यक्ष रुप से कभी-कभी मैं देखा हूँ परखा हूँ कि साहित्यिक सम्मान से समझौता किया जाता है। बहुत से साहित्यिक संस्थाएं हमारे देश से लेकर विदेशों तक चल रही है। जो एक दूसरे को अपने यहाँ बुलाकर समझौते के तहत सम्मानित करते हैं। साहित्य में कोई समझौता नहीं होता यह तो एक स्वयंप्रवाह है, जो लोगों के हृदय से उमड़ते हुए जन-जन तक पहुँचता है। इससे स्पष्ट होता है कि साहित्य को नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष को साहित्यिक संस्थाएं जगह देतीं हैं। जबकि सहित्य की दुनियां में यह उचित नहीं है।

हमारे देश में एक दौर चला था सम्मान का बहिष्कार करना। यह कहाँ तक उचित था। यह मेरे अनुभव के परे है लेकिन इतना तो जरूर समझ पा रहा हूँ कि मिला हुआ सम्मान लौटाना सरासर उस दिये गये सम्मान का अपमान है। लौटाने का मतलब साफ है कि वह सम्मान किसी योग्य व्यक्ति के पास नहीं गया इसलिए वह वापस अपने पास आ गया। हमारा साहित्य इसकी इजाजत नहीं देता इस साहित्य की दुनिया में यह दास्तान शर्मनाक है।

इतना ही नहीं बल्कि हमारे साहित्य के क्षेत्र में यश कीर्ति पाने के लिए होड़ मची हुई है ,मचना भी चाहिए क्योंकि यह साहित्य का क्षेत्र है जन-जन तक पहुंचना चाहिए लेकिन सही तरीके से सही पैमाने को पार करके न कि गलत तरीके से। जहां तक मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आज के साहित्यिक दौर में अच्छे साहित्यकार को जगह नहीं मिल पा रहा है। बहुत से साहित्यकार भाई मात्र एक प्रमाण पत्र तथा लोगों के सामने अपने आप को दिखाने हेतु मिलीभगत कर साहित्य की धज्जियां उड़ा रहे हैं। व्यक्तिगत जान पहचान के बल पर अच्छे रचनाकार की महत्ता कम होती जा रही है। सम्मान पाने के लिए एक संस्था दूसरी संस्था से समझौता करती हैं जबकि यहाँ समझौता नहीं बल्कि रचना की उत्कृष्टता देखी जानी चाहिए।

आजकल हमारे साहित्य में जब कोई पुस्तक प्रकाशित हो जाती है तो किसी न किसी के पास समीक्षा के लिए जाती है। वे साहित्यकार कहीं न कहीं उनके नजदीकी के होते है ओर उन्हीं के मन मुताबिक़ समीक्षा देते हैं जबकि पुस्तक की समीक्षा समीक्षक के अनुसार होनी चाहिए। आजकल के दौर में समीक्षा में सिर्फ गुण बतलाये जाते हैं शायद दोषमुक्त होती है। इस प्रकार से साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा में बनावटीपन ज्यादा पनप रहें हैं।

साहित्य के बढते इस दौर में अनेकों प्रकार के लोग अनेक सोच लिए अपनी अपनी भावनाओं को लेखनी के जरिए प्रगट करते हैं शायद इसी का कुछ असर साहित्य की दुनिया में पड़ रहा है। छोटा हो या बड़ा सहित्यिक संस्थाएं कहीं न कहीं साहित्यिक जगत में अपना-अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। लेकिन शोचनीय स्थिति तब पैदा होने लगती है जब एक रचनाकार ही रचनाकार से भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने लगते हैं। नव युवा रचनाकारों को आगे न बढाकरके बल्कि अपने पीछे चलने को बाध्य करतें हैं। रचनाकारों की भीड़ इकट्ठा करने के लिए नये रचनाकारों को प्रलोभन देकर उनपर राज करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि साहित्य के दुनिया में सिरमौर बने रहना चाहते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। साहित्य एक खुला समाज है यहाँ लोगों को खुला विचार रखने का पूर्ण अधिकार है। आज के समय में साहित्यिक मंचों पर भी नव युवा रचनाकार के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाईं जाती है जिसे समझ पाना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि इसे बड़ा चालाकी से समायोजित किया जाता है। इस प्रकार से कुछ खास लोगों को ही मंच प्रदान किया जाता है।

साहित्य के क्षेत्र में आज साहित्यकारों में अर्थोपार्जन करने की धारणा बन गई है।इस वजह से साहित्य की उत्कृष्टता में कमी महसूस हो रही है। जो आगे चलकर समाज की दिशा और दशा दोनों में भारी परिवर्तन कर सकता है। इतना ही नहीं बल्कि रचनाकारों की ओर से रचनाएँ बेची जा रहीं है। बहुत से साहित्यकार साझा संकलन के नाम पर नव रचानाकारों से अच्छा खासा पैसा वसूल कर रहे हैं। इस प्रकार से रचनाओं का बाजारीकरण में पहले से ज्यादा वृद्धि हुई है। जबकि यह साहित्य समाज के लिए ठीक नहीं है।

कहीं कहीं देखा गया है अच्छे साहित्यकार साइड में कर दिये जाते हैं और थोड़ा बहुत जानकारी रखने वाले साहित्यकार को प्रथम स्थान पर रखकर उन्हें सम्मान दिया जाता है। मानता हूँ इस प्रकार की घटनाएं लोगों की पहुंच होने की वजह से होती है लेकिन वे लोग मौन क्यों बने रहते है जिनके उपर इस तरह का निर्णय लेने के लिए दायित्व रहता है। इससे साफ पता चलता है कि निर्णय की भूमिका में निषपक्षता का अभाव होता है।

इस प्रकार से साहित्य में कुड़ा करकट भर जाने के वजह से हमारा साहित्य दिन प्रतिदिन अपने महत्व को खोता जा रहा है। पैसे के बल पर रचनाओं का प्रकाशित होना रचनाकार की जगह रचनाकार को महत्व देना साहित्य को साहित्य से दूर भगाना है। हमें तो यही लगता है कि और जगहों की तरह पैसा साहित्य पर भारी पड़ रहा है। जो साहित्य के भविष्य के लिए चिन्ताजनक है।

उपर्युक्त बातों से स्पष्ट होता है कि हमारे साहित्य की दुनिया में अभी बहुत सारी खामियां धीरे धीरे जगह बना रही है। इन्हीं के वजह से साहित्य की दुनिया में ये सारी प्रवृत्तियाँ आ चुकी है जैसे- “अहम की भावना,सम्मान से समझौता,सम्मान का बहिष्कार,सम्मान प्राप्ति के लिए पैरवी,बनावटी समीक्षा,खास लोगों को मंच देना,नव युवा रचनाकार को पिछे धकेलना,सिर मौर बने रहना,रचनाओं का बाजारीकरण,साहित्य से व्यवसाय की ओर,निर्णय की भूमिका में निषपक्षता का अभाव ,साहित्य में कुड़ा करकट,पैसे से साहित्य का महत्व ,रचना से रचनाकार को महत्व देना,पैसे के आगे साहित्य मौन” अपनी जगह बना रही है। चिन्ता का विषय यह है कि इसी प्रकार से चलता रहा तो भविष्य में साहित्य महत्वहीन नजर आयेगा इसलिए हम सभी को कोशिश करना चाहिए कि जैसे अपने-अपने घरों से कुड़ा करकट को बाहर निकाल देने से घर स्वच्छ नजर आता है और वातावरण भी शुद्ध हो जाता है ठीक उसी प्रकार हम सभी को एक साथ हाथ में हाथ मिलाकर साहित्य की दुनिया से कुड़ा करकट को हटाकर साहित्यिक वातावरण शुद्ध बनाना है।

© रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’

रमेश कुमार सिंह 'रुद्र'

जीवन वृत्त-: रमेश कुमार सिंह "रुद्र"  ✏पिता- श्री ज्ञानी सिंह, माता - श्रीमती सुघरा देवी।     पत्नि- पूनम देवी, पुत्र-पलक यादव एवं ईशान सिंह ✏वंश- यदुवंशी ✏जन्मतिथि- फरवरी 1985 ✏मुख्य पेशा - माध्यमिक शिक्षक ( हाईस्कूल बिहार सरकार वर्तमान में कार्यरत सर्वोदय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सरैया चेनारी सासाराम रोहतास-821108) ✏शिक्षा- एम. ए. अर्थशास्त्र एवं हिन्दी, बी. एड. ✏ साहित्य सेवा- साहित्य लेखन के लिए प्रेरित करना।      सह सम्पादक "साहित्य धरोहर" अवध मगध साहित्य मंच (हिन्दी) राष्ट्रीय सचिव - राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन मध्यप्रदेश,      प्रदेश प्रभारी(बिहार) - साहित्य सरोज पत्रिका एवं भारत भर के विभिन्न पत्रिकाओं, साहित्यक संस्थाओं में सदस्यता प्राप्त। प्रधानमंत्री - बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इकाई सासाराम रोहतास ✏समाज सेवा - अध्यक्ष, शिक्षक न्याय मोर्चा संघ इकाई प्रखंड चेनारी जिला रोहतास सासाराम बिहार ✏गृहपता- ग्राम-कान्हपुर,पोस्ट- कर्मनाशा, थाना -दुर्गावती,जनपद-कैमूर पिन कोड-821105 ✏राज्य- बिहार ✏मोबाइल - 9572289410 /9955999098 ✏ मेल आई- rameshpunam76@gmail.com                  rameshpoonam95@gmail.com ✏लेखन मुख्य विधा- छन्दमुक्त एवं छन्दमय काव्य,नई कविता, हाइकु, गद्य लेखन। ✏प्रकाशित रचनाएँ- देशभर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एवं  साझा संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित। लगभग 600 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं तथा 50 साझा संग्रहों एवं तमाम साहित्यिक वेब पर रचनाये प्रकाशित। ✏साहित्य में पहला कदम- वैसे 2002 से ही, पूर्णरूप से दिसम्बर 2014 से। ✏ प्राप्त सम्मान विवरण -: भारत के विभिन्न साहित्यिक / सामाजिक संस्थाओं से  125 सम्मान/पुरस्कार प्राप्त। ✏ रूचि -- पढाने केसाथ- साथ लेखन क्षेत्र में भी है।जो बातें मेरे हृदय से गुजर कर मानसिक पटल से होते हुए पन्नों पर आकर ठहर जाती है। बस यही है मेरी लेखनी।कविता,कहानी,हिन्दी गद्य लेखन इत्यादि। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आदरणीय मित्र मेरे अन्य वेबसाईट एवं लिंक--- www.rameshpoonam.wordpress.com http://yadgarpal.blogspot.in http://akankshaye.blogspot.in http://gadypadysangam.blogspot.in http://shabdanagari.in/Website/nawaunkur/Index https://jayvijay.co/author/rameshkumarsing ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आपका सुझाव ,सलाह मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत है ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~