कविता

जिसे देख कर ही प्यार दुलार पुचकारने का मन होता हैं

जिसे देखकर ही
प्यार दुलार पुचकार
करने का मन होता हैं
जो बेफिक्र हो कर
हंसती खिलखिललाती
किसी के पास चली जाती है
जिसे तुम जैसे मर्दो के
मानसिकता के बारे में पता नही
वो तो बस प्यार के भूखी होती है
वैसे नन्ही कली को
तुम कैसे नोच डालते हो
कैसे तुम्हारे हाथ
ये करने के लियें आगे बढते हैं
जिसे सुनकर ही रूह तक
कॉप उठता हैं
वही काम तुम अपने हाथो से कैसे कर लेते हो
तुम मानव नही दानव हो
बस कलियो को रौदना जानते हो
खिलने से पहले ही उसे तोड़ देते हैं
क्यों नही तुम्हे उस मॉ की याद आती
जिसने तुम्हे जन्म दिया
क्यों नही उस बहन की याद आयी
जिसने अपने रक्षा के लिये
तुम्हारे कलाई पर राखी बॉधी
क्या करोंगे रक्षा उस बहन की
जिस बहन के ही एक रूप को
हवस का शिकार बना लिया
अपने पुरूषार्थ को शर्मशार किया
कर देते हो कलंकित
अपनी मॉ की भी कोख को
वो मानव रूपी दानव
बस करो अपनी मर्दागिनी
बस करो हवस भरी निगाहो से देखना।
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४