गीत/नवगीत

नवगीत

दर्द मुस्काने लगा,
मातमों का राज है !

है तिमिर की वंदना अब
रो रहा उजियार है
अब व्यथा नग़मे सुनाती
पीर का संसार है

सत्य बौना हो गया,
घुट रही आवाज़ है !

वक़्त,लगता हो महाजन
किश्त भरवा रहा
ज़िन्दगी है कर्ज़ जैसे
बाज़ियां हरवा रहा

मूल तो ठहरा वहीं पर,
बढ़ रहा पर ब्याज है !

त्रासदी का दौर है यह
सांस घुटती जा रही
बस्तियां आतंकमय हैं
चीख बढ़ती जा रही

दुर्दिनों का तांडव है,
कोढ़ में अब खाज है !

प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com