गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल-कान सभी दीवारों में

हम तो सच को ढूँढ रहे हैं यारों में
यार उसे लेकर बैठे बाज़ारों में

ये माना अख़बार पढ़ा है तुमने पर
क्या सब कुछ सच ही छपता अख़बारों में?

फूलों की खुशबू फूलों में पाओगे
बेमतलब ही तुम उलझे हो ख़ारों में

अपना ही किरदार भुलाये बैठे हम
इतना खोये औरों के किरदारों में

जाने क्यों नौका ख़ुद पर इतराती है
सारी ताक़त होती है पतवारों में

लोग जगे जब से रखवाली करने को
तब से कितनी चिंता पहरेदारों में

दीवारों के कान कभी क्या दिखते हैं?
पर होते हैं कान सभी दीवारों में

डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674