कथा साहित्यलघुकथा

सीमा –

“माँ! ऐसे गुमसुम बाहर क्यों बैठी हैं ? चलिए अंदर, टीवी पर आपका पसंदीदा नाटक आ रहा है |”
“क्या नाटक देखूं बहू, घर में ही नाटक होता देख रही हूँ |”
“कहना क्या चाह रही हैं माँ?”
“बहू जरा नजर रख अंशुल पर | कहीं मेरी तरह, तेरी तक़दीर में भी अकेलापन न लिख दिया जाए |”
“माँ, आप भी अपने बेटे पर शक कर रही हैं और कल सब्जी लेते समय सुमन भी कुछ ऐसा ही संकेत कर रही थी |”
“ठीक कह रही हूँ बहू, छूट देने का खामियाज़ा खुद भुगत रही हूँ मैं | अब वही दुःख तुझे भी भुगतते नहीं देख सकूंगी |”
“जी माँ आप चिंता न करें|” सामने से अंशुल को आता देख मुस्कराहट की चादर ओढ़ ली |
अंशुल के कमरे में आते ही कुसुम ने प्रश्नों की बौछार उस पर शुरू कर दी | अंशुल बड़ी चालाकी से हर प्रश्न का उत्तर साफगोई से दें बचता रहा | कुसुम के सिर की कसम खाकर अंशुल बोला- “तुम्हें धोखा देने का तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता |”
कुसुम को विश्वास हो गया अंशुल ऐसा कुछ नहीं कर सकता| फिर भी माँ की बात उसके दिल में खटक रही थी इसलिए बच्चे का क्रंदन भी नहीं सुन पाई | अंशुल ने कहा- “अब तो सब क्लियर हो गया, फिर भी तुम क्या सोच रही हो ?”
वह चुपचाप अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए दरवाजे की तरफ पीठ कर बैठ गयी | उसने पीठ की ही थी कि कामवाली के पायल की आवाज गूंजी | अंशुल भी दबे कदम कमरे से बाहर चला गया, बाहर जाकर कामवाली का हाथ अभी पकड़ा ही था कि दरवाजे पर छड़ी लिए खड़ी कुसुम को देख घबरा गया |
कुछ समय बाद माँ अंशुल के घावों पर हल्दी लगाते हुए बोली- “कहा था न बाप की राह पर मत चलना | मैं कमजोर थी, पर बहू नहीं |”
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*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|