कविता

संन्नाटा

हाँ सन्नाटा अच्छा लगता है
कम से कम कुछ सोच लेता हूँ
पुराने जख्म की पपडी को खरोंच लेता हूँ
अच्छा लगती है वो आहिस्ता से
निकलती खून की बूँद
इस सन्नाटे में महसूस करता हूँ
किसी को आँखे मूँद
हाँ ये सन्नाटा अच्छा लगता है
सुन लेता हूँ अंदर की चीख-पुकार
दबाये रखूँ या फिर हो कोई विचार
साँसों के साथ-साथ निकल आते हैं
शिकवे-गिले
याद करूँ किसको इस सन्नाटे में?
जो छोड़ गये या मिले
हाँ ये सन्नाटा अच्छा लगता है
आया हालात अपनी फौज लिए
पहुँचाने मुझे श्मशान में
लो मैं भी आया टूटी-फूटी
आस लिए मैदान में
निहत्था ही मैं इनसे आज भिड़ जाऊं
आत्मसमर्पण या इस सन्नाटे में
आशावादी बन लड़ जाऊं
हाँ ये सन्नाटा अच्छा लगता है

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733