लघुकथा

“रश्मि का पाक सम्मान”

आज रश्मि के खुशी का ठिकाना नहीं है, हो भी क्यों नहीं, सम्मान किसको प्यारा नहीं होता। प्रतिपल सभी यही तो चाहते हैं कि उसके कर्म का, उसके व्यवहार का, उसकी लगन की तारीफ हो, पर आम जीवन में ऐसा कहाँ होता है। जन्मपर्यन्त जूझना ही तो पड़ता है। शिक्षा से शुरू होती है जिंदगी और बिना सम्मान-ज्ञान के समाप्त हो जाती है। खैर, जीवन है तो अवसर भी आते रहते हैं और बहुत कुछ ले, दे कर, कभी निराश तो कभी आस बँधाकर कर चले जाते हैं। हर किसी के साथ ऐसा ही होता है, जिसपर रश्मि की खुशी जायज ही है। उसकी नन्ही परी का स्कूल में दाखिला हुआ और वह पहले दिन तो बड़े उत्साह से सजधजकर स्कूल गई पर दूसरे दिन अपनी मम्मा को कह दी कि मम्मा मुझे अब डॉक्टर नहीं बनना है और स्कूल जाने की कोई जरूरत नहीं है। सब लोग उसकी नटखटी बोली को सुनकर ठठा कर हँस दिए और उस दिन परी ने स्वेक्षिक अवकाश घोषित कर दिया गया। कुछ दिन तो मान मनौअवल से बहला- फुसलाकर परी स्कूल जाती रही और हाजिरी लगती रही पर यह कबतक चलता, निरस शिक्षा और बचपनी फितूर, खेलना-कूदना और उछलना ही इस उमर की सर्वोत्तम शिक्षा होती है जिससे अब नौनिहाल लगभग दूर कर दिए गए हैं। सबकी यही चाहत है कि नामी-ग्रामी स्कूल हो, तीन वर्ष से ही बच्चे स्कूल परिसर में पहुँच जांय और जल्दी से नाम रोशन कर दें। बच्चों पर समय से पहले लदा हुआ यह बोझ उसके बचपन के लिए खलनायक बना हुआ है पर हमारी सोच और प्रतिष्ठा को यह बोझ कहाँ दिखता है। यह प्रचलन हमें कसकर घेरे हुए है और हम अपने बच्चों पर आधुनिक प्यार लुटाने वाले अभिवावक खुशी से झूम रहें है कि हमारा लाड़ला बड़े और महँगे स्कूल में पढ़ रहा है, क्या और कैसे पढ़ रहा है यह तो भविष्य के गर्भ में छूपा हुआ है। खैर दूसरे स्कूल में परी से यह कहकर दाखिला हुआ कि वह खेल-कूद का स्कूला है और परी अपनी सहेली के साथ उस नए स्कूल में जाने को तैयार हो गई, वहाँ बिना झिझक जाने भी लगी कि एक दिन उसकी दादी ने फोन पर बात करते हुए परी से पूछा कि किस क्लास में पढ़ती हो तो उसने अपनी आवाज दबाकर धीरे से कहा कि प्ले में सहेली के साथ बैठती हूँ। बात कुछ साफ नहीं हुई तो रश्मि की सासु ने रश्मि से पूछा क्या कह रही है तो राज की बात मालूम हुई कि टीचर से कहा गया है कि कुछ दिन इसे प्ले वर्ग में ही बैठने दीजिए, सहेली के साथ मन लग जायेगा तो अपने के.जी. वन वर्ग में बैठेगी, लिखना पढ़ना तो सब कुछ घर पर ही सीख गई है। परी की चालाकी और निश्छलता पर सब मोहित हो जाते हैं।

तीन महीने बाद स्कूल में पकवान प्रतियोगिता का आयोजन हुआ और रश्मि ने कुछ स्वादिष्ट सुंदर डिस सजाकर परी के साथ स्कूल में परीक्षा देने गई और पकवान प्रतियोगिता का पहला इनाम जीत गई। पूरे स्कूल में परी का सम्मान चर्चित हो गया और रश्मि को औलाद के प्रथम जीत की खुशी के साथ ही साथ परिवार के उन तानों पर भी विजय प्राप्त करने की खुशी मिली जो गाहे-बगाहे उसे ससुराल में सुनना पड़ता था कि खाना ठीक नहीं बना है। उसने वह प्रमाण पत्र अपनी सासू जी को पकड़ा कर कहा कि यह पकवान प्रतियोगिता में मिला हुआ प्रथम सम्मान है। यह बात जोर-शोर से अड़ोस-पड़ोस में फैल गई कि रश्मि जितनी सुंदर है जितनी पढ़ी लिखी है उतनी ही पाक प्रवीण भी है। शहर के सबसे बड़े स्कूल ने उसे सम्मानित किया है और घर आने-जाने का तांता लग गया, परी को ढेरों गिफ्ट मिले और रश्मि की झोली बधाई से भरती चली गई। है न अपेक्षित सम्मान जरूरी?……! जो पहले तो परिवार से ही मिलना चाहिए।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ