कविता

क्या सोचते हो….अभी भी

बातें तो बहुत हैं, सीधी की
हर जगह जोर की आवाज में
मीठी – मीठी सुनाई दे रही हैं
अपने आचरण के लिए नहीं
दूसरों को बताने के लिए हैं
मनुवाद की छाया है वह
जीभ – जीभ का राजा है
दलितों को अभी भी
ठगते – फिरोता रहा है।
अमानवीयता का व्यवहार
देश के कोने – कोने में
हर हरकतें उसकी है।

बाबा की उँगली है सामने
महान लक्ष्य की ओर
ईशारा करती रही…
अस्मिता का चेहरा दिखाते
अपने आपको ईजाद करते
आगे बढ़ते जाओ..
आगे बढ़ते जाओ…
देखो उस उँगली को,
ताकत है उसमें कितनी
संसार की है वह चेतना
मानवीयता का सबक है
इंसानियत को बचाने का
सुंदर संदेश है अपनाने का।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।