हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – सर्दी का सितम

सर्दी का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। दिन भी ठंडा है और रात भी ठंडी है। इस ठिठुरन से लोकतंत्र ठिठुर रहा है। नेता ठिठुर रहे है, जनता ठिठुर रही है, जानवर ठिठुर रहे है। ठिठुरन के मारे रजाई से बाहर निकलने का मन ही नहीं कर रहा है। सुबह उठते ही सीधी दोपहर हो रही है। दोपहर होते ही सीधी रात हो रही है। ठंडी हवाओं से कँपकँपी छूट रही है। काश ! ये ठंडी हवाएं मई-जून के महीने में चलती, तो इनके घर का क्या जाता ? सबकुछ ठिठुर रहा है। खून का ट्रैफिक जाम हो गया है। माना कि सर्दी का सितम घना है, लेकिन अलाव जलाना कहां मना है। अलाव पर अलाव सुलगा रहे है। बिना अलाव के सर्दी जाती भी तो नहीं। वैसे भी सरकारी दफ्तरों में तो बारह मास सर्दी लगी ही रहती है। जब तक अलाव की गर्मी न दे, तब तक काम होता ही नहीं। सभी अलाव के आदी है। सारा का सारा माहौल फसादी है। रात को खेत की चौकीदारी करते किसान ठिठुर रहा है। किसान का कुत्ता ठिठुर रहा है। किसान की पत्नी घर में पति के अभाव में ठिठुर रही है। विरह वेदना का पारा चढ़ रहा है। दिन ढल रहा है और देह जल रही है।
सर्दी का सितम कई लोगों की कद्र करवाना सीखा देता है। जिस सूरज से हम गर्मी के महीने में आंखें चुराते है, सर्दी में उसी सूरज की तपिश पाने के लिए उतावले रहते है। यानि मानव तो मौसम और हालात के हाथ की कठपुतली है। आदमी के वश में कुछ भी तो नहीं है। आदमी पर दो ही चीजों का जोर चलता है एक तो मौसम का और दूसरा पत्नी का। देश की सड़कों पर स्याह शीत रात में कंबल के मोहताज वे लोग ठिठुर है। जिनके दम पर कोई भी लायक व नालायक नेता सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने की सीढ़ी चढ़ता है। बच्चें ठिठुर है। ठिठुरन के मारे मर रहे है। मोदी जी चाय की गर्मी से अपने को गर्म कर रहे है। राहुल बाबा मम्मी के पल्लू से लिपटकर अपनी सर्दी भगा रहे है। केज्जू भईया का मफलर जिंदाबाद है। मायावती हाथियों की ओट में सर्दी को चकमा दे रही है। लालू जी गर्म राबड़ी के स्वाद से चार्ज हो रहे है। सभी के पास सर्दी को भगाने के लिए अपने-अपने हथियार है। जो राजनीति में बडे ही मददगार है। ऐसे में गरीबी से ठिठुरती जनता की फरियाद कौन सुनें। और उनके लिए स्वेटर भला कौन बुनें।  ठंड के कारण नाक से गंगा-जमुना बहने लग गई है। ऐसे में रुमाल हाथ से छूट ही नहीं रहा है। जैसे रुमाल न होकर किसी शराबी के लिए शराब हो और सत्ता की चिलम पीने वाले के लिए चिलम हो। नाक के अंदर का मटेरियल हमें ऐसे ही धमका रहा है जैसे आजकल उत्तर कोरिया अमेरिका को धमका रहा है। धमकियों से डर डरकर हम रोज मर रहे है। लेकिन हम भी तमाशा देखने के शौकीन कुछ नहीं कर रहे है। ये सर्दी तू गरीबों के लिए आती है तो कुछ भी लेकर नहीं आती। सिर्फ हर दिन धूजाती है। तेरा स्नेह अमीरों पर कुछ ज्यादा ही है। जिनके लिए तू लेकर आती है – हल्दी की सब्जी, गाजर का हलवा, बेसन के लड्डू, खजूर, तिल की गजक इत्यादि। यह तेरा कैसा इंसाफ है – हे ! सर्दी देवी।
लगता तो यह है कि तंत्र, हालात और माहौल के बाद मौसम भी गरीब का जानी दुश्मन बनता जा रहा है। गरीब गर्मी में तपकर यह सोचता है कि कब बरसात होगी ? जब बरसात होने लगती है तो तब सोचता है कि कब सर्दी आयेगी ? जब सर्दी दस्तक दे देती है तो फिर गर्मी की कल्पना मस्तिष्क में उपजने लगती है। लेकिन, न तो गरीब गर्मी में पसीने के कारण सो पाता है, क्योंकि उसे मच्छर मार खाते है। आजादी ने मच्छरों के खानदान को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसलिए मच्छर तो खाएंगे ही खाएंगे। क्योंकि मच्छर तो खाने के लिए ही पैदा होते है। ये मच्छर जो खुद को बड़ा जनसेवक बताते है, दरअसल ये गरीब के खून के प्यासे हैं। जब तक खून पी नहीं लेते, तब इनका खाना हजम ही नहीं होता। वहीं, बरसात में टपकती छत से गिरता पानी गरीब को कुछ पल के लिए मछली वाली फीलिंग करा जाता है और उसकी नींद की ऐसी की तैसी कर देता है। फिर सर्दी की सीजन में ठंड हड्डियों में उसी तरह अवैध तरीके से घुस आती है, जैसे आजकल भारत में रोहिंग्या घुसकर आ रहे है। सारा काम बिगाड़ कर रख देती है। संक्षिप्त में कहे तो सर्दी में हर दिन सर्द मिला। इस तरह हमें हर मौसम बेदर्द मिला।
सर्दी के सिर्फ नुकसान ही नहीं है हुजूर ! हर चीज के तरह सर्दी के भी दो पहलू है। अभी तो हमने नकरात्मक पहलू पर सनसनी नजर घुमाई है। मेहरबानों और कद्रदानों ! अब हम आपको सर्दी के कुछ सकारात्मक पहलूओं के बारे में भी बताना चाहेंगे। एक तो यह है कि सर्दी आते ही घर के सारे पंखे, कूलर व फ्रिज आदि पर बंदिशे लग जाती है। जिसके कारण बिजली का बिल अधिक आना बंद हो जाता है। फलस्वरूप उर्जा का संरक्षण भी हो जाता हैं। गरीब तो यह सोचकर ही सर्दी का सितम हंसते-हंसते सह लेता है और ज्यादा सर्दी पड़ने पर उसकी मार से शहीद भी हो लेता है। दूसरा सर्दी का फायदा यह है कि नहाने पर कर्फ्यू लग जाता है। जिसके कारण जल संरक्षण भी हो जाता हैं। तीसरा फायदा यह है कि सर्दी में दूध भी नहीं फटता है। इस दुर्घटना के होने के डर से भी लोगों को मुक्ति मिल जाती है। लेकिन, सर्दी में ऊनी कपड़े पहनना भी बड़ा मुश्किल काम होता है। इन कपड़े में न तो हाथ सही से बाहर निकल पाते और न ही मफलर के कारण सांस सही से ले पाते है। और टोपे में तो आदमी बंदर की तरह नजर आता है। वैसे भी आदमी तो अब बना है बाकि तो आदमी की औकात तो बंदर की ही है ना ! सर्दी का एक ही इलाज है वो है गर्मी उत्पन्न की जाये। गर्मी उत्पन्न करने के तीन ही विकल्प है – पैसा, पत्नी और वो ! समझ गये ना ? अगर इन तीनों में से एक भी विकल्प आपके पास नहीं है तो फिर आपके पास एक ही विकल्प है – सर्दी की बलिवेदी पर हंसते-हंसते शहीद हो जाये।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com