कविता

कविता

आँखों से सब कह देना
आँखों से छुपा लेना
आँखों से हंस देना
आँखों से रो देना
आँखों से सारी शिकायतें
आँखों से सारी गुस्ताखियां
आँखों से नाराजगी
तो आँखों से ही मुहब्बतों की बारिश
उफ़…. कितनी हसीन गुफ्तगू होती है
वो जो आँखों से होती है,
होंठ खामोश होते है ..
धडकनें मचलती है
जे़हन मे सपने संवरते है
मन आसमानों में विचरते है
किसी की कुछ खबर नहीं होती है
बस महबूब के राहों पर नजर होती हैं
हाये… वो मासूम उम्र के मासूम इश्क..
बारिशों के लय पर हवायें अपने आप गुनगुनाती है..
एक अँजानी सी खुशबू आस पास बिखर जाती है ।
ये सारे अँखियों के ही तो खेल होते हैं
जब मुहब्बत में दो दिलों के मेल होते हैं।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)