ग़ज़ल
रात तन्हा है मेरी और सहारे आँसू
ख़त्म उम्मीद नहीं और न हारे आँसू
दर्द की शब में सबब पूछ उजाले का क्या
चंद उम्मीद लिये चाँद सितारे आँसू
सूख कर गाल में एक नक्श बना डाला है
हू-ब -हू दिल की दास्तान उभारे आँसू
संग शहनाइयों के चूर ख़्वाब हो बैठे
टूट कर गिर गये आंखों से कुँआरे आँसू
सूख कर रह गयीं आँखें इधर जुदाई में
शख़्स यक ले गया है साथ में सारे आँसू
प्रवीण ‘प्रसून’