कविता

कविता – कलम

लोग कहते हैं
कि कलम हाथ से चलती
मैं कहता, कलम हाथ से नहीं,
दिम़ाग से चलती है
सोच से चलती है
जिसकी जैसी सोच होगी
कलम की उतनी पहुँच होगी
खूने-ज़िगर काग़ज पर
वो बिखेर देती है
परन्तु अपनी मर्जी से
निर्णय कुछ ना लेती है
उसे तो जकड़े रहता है
पकड़े रहता है
उस कवि/शायर का हाथ
जिसके सिर में चल रही होती
उथलपुथल जैसी
मजबूरन लिखती वो इबारत वैसी…

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201