कवितापद्य साहित्य

// स्वतंत्रता //

// स्वतंत्रता //

खिलने दो
अपने आप
इन नन्हें सुमनों को
हाथ न जोड़ो
ये मुरझा जाएँगे
ये प्रकृति की भव्य संपदा,
हर फूल में है अपार सुगंध
खुलकर बाहर आने दो
सारे जग में फैलाने दो
सींचना, खाद देना,
हर पल अपने आँखों में
देखना है इन मुन्नों को
खिलने दो
अपने आप
इन नन्हें सुमनों को।

चलने दो
अपने आप
इन नन्हें कदमों को
उठते – गिरते – खिलखिलाते
आगे बढ़ने दो
हर अदम में है ताकत देखो
सारे जग में फिरने – घूमने की,
अपार निधियों की खोज में
चलने दो
अपने आप
जीवन का सुख सार दिखलाने में
मानवता मूर्ति बनने दें।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।