गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – है बड़ा अच्छा तरीका जुल्म ढाने के लिए

ढूढते   हैं  वो  बहाना   रूठ   जाने  के  लिए ।
है बहुत अच्छा तरीका  ज़ुल्म  ढाने  के लिए ।।

इक  तेरा मासूम  चेहरा  इक  मेरी   दीवानगी ।
रह गईं यादें  फकत  शायद मिटाने  के  लिए ।।

फिर वही क़ातिल निगाहें और अदायें आपकी ।
कर रहीं हैं कुछ सियासत दिल जलाने के लिए ।।

घर मेरा रोशन है अब भी आपके जाने के बाद ।
हैं  चरागे  ग़म यहाँ  घर  जगमगाने  के लिए ।।

चैन  से मैं सो  रहा था  कब्र में अपनी तो क्यों ।
तुम यहाँ  भी आ गए मुझको सताने के लिए ।।

ये समंदर  चल  पड़ा  लेने  उसे  आगोश  में ।
उठ रहीं लहरें बहुत दरिया को  पाने के लिए ।।

शक़ की बुनियादों पे कोई ताज कायम कब रहा ।
आशिकी  होती  कहाँ  है आजमाने  के लिए ।।

हो  गया  कुर्बान  वो मजबूरियों  के  नाम पर ।
कौन जीना चाहता  है  मुँह  छुपाने के लिए ।।

इश्क़ में तू डूब लेकिन याद रख इतना सबक़ ।
लोग मिलते हैं यहाँ ख़्वाहिश जताने के लिए ।।

इस तरह तपती हुई प्यासी जमीं को देखकर ।
आ रहे बादल यहाँ कुछ दिन बिताने के लिए ।।

बारिशों  के  दौर  में अब  हो  गए  चेहरे  हरे ।
है किसी मधुमास का यौवन रिझाने के लिए ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com