बाल कविता

चिड़िया रानी

 

चिड़िया रानी, चिड़िया रानी,
तुम तो निकली बड़ी सयानी।

मेरी बगिया में तुम आई,
एक पेड़पर जगह बनाई।
मिहनत से मुँह कभी न मोड़ा,
तिनका-तिनका तुमने जोड़ा।
एक घोंसला वहाँ बनाया,
जो हमसब के मन को भाया।
कभी न की तुमने शैतानी,
तुम तो निकली बड़ी सयानी।

बच्चे आये वहाँ तुम्हारे,
छोटे-छोटे, प्यारे-प्यारे।
दाने उनको रोज खिलाती,
उड़ना भी तुम ही सिखलाती।
चूँ-चूँ, चूँ-चूँ बच्चे गाते।
चहक-चहक डालोंपर जाते।
तुमसे बगिया हुई सुहानी।
तुम तो निकली बड़ी सयानी।

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन