कविता

पहचान

गिल्ली डंडा और कंचों को कौन पूछेगा
अब घर के किसी अनछुए कोने में पड़े
सिसक रहे होंगे
वो बचपन के खेल और खिलौने
बड़ा बदलाव देखा है मैंने जिनके
साथ सारा बचपन भी बिताया
आजकल वह कम आने लगे हैं,
धुल और धुँए के पास
गाड़ियों में आते हैं ,
बड़ी-बड़ी ब्रांड के कपड़े भी पहनते हैं
लोग जुबां पर उन्हीं का नाम रखते हैं
परवीन तेरे हर्फों को कौन पढ़ पाएगा
पागल सा कह कर टाल देती है भीड़ गांव की
तुं कमाता नहीं है ,लगता है अजीब सा
वहम पाल रखा है तूने शब्दों को इकट्ठा करने का
कई कामयाब दोस्त तो नसीहत भी देते हैं
छोड़ दे सब कुछ कुछ नहीं होगा !इससे
दरअसल मैं भी हठी आदमी हूं
मुझे कुछ कमाना भी नहीं है
कामयाब दोस्तों समझ नहीं पाएंगे
सुकून देते हैं ये हर्फ
रात के वक्त जब आंखें टकटकी लगाए
आसमान को देखती रहती हैं
मेरे ख्वाब आसमान को कागज बना लेते हैं
लिख देते हैं ,कहानी जो महसूस हुई है
अभी तक 25 बरस में मेरी कमाई मेरी पहचान है बस

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733