कविता

सिलवटें

पड़ रही है
मन पर
उम्र की सिलवटें
मैं चाह कर भी
नवयौवना सी
सज नहीं पाती
मन के किसी कोने में
ये अधुरापन हावी रहता है
चालिस बसन्त के बाद
तन और मन की स्थिति
शायद ऐसी ही होती है
बन संवर कर जब भी
देखती हूँ आईना
मुंह चिढातें है
कुछ सफेद बाल
आंखों के नीचे
नींद की कमी से हुये
काले घेरे
चेहरे पर अजीब सी थकावट
रोज काम की फेरहिस्त बनाती हूँ
पर कुछ काम मन पर बोझ बनकर
तन पर हावी हो जातें है
फिर भरी दोपहर में सब कुछ
ऐसे ही छोड़ बेतक्कलुफी से
चादर तान कर
उम्र की सिलवटों को चाद्दर में डाल देती हुँ
अब बदल गये है
मन के भाव भी तन के साथ।।
अल्पना हर्ष, बीकानेर

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - alpanaharsh0@gmail.com बीकानेर, राजस्थान