हास्य व्यंग्य

झूठे भावुक-सच्चे भावुक

अभी तक तो हम सभी यह मानते आये हैं कि जो लोग डरपोक होते हैं, कमजोर दिल वाले होते हैं या फिर कहें कि भीरू प्रकृति के होते हैं; वे ही आत्महत्या करने जैसे कदम उठाते हैं लेकिन हम लोगों की यह गलतफहमी देश के ह्रदय स्थल माने जाने वाले प्रदेश के मंत्रीजी ने दूर कर दी।अब जब उनके जैसे माननीय व्यक्ति ने यह बात कही है तो हम सभी को मानना ही पड़ेगा कि मध्य प्रदेश का किसान भावुक होता है और इसीलिए वह खुदकुशी जैसा कदम उठाता है।मंत्रीजी ने इतना कहा है तो मान लेने में कोई हर्जा भी नहीं है।
किसान भावुक है तो आत्महत्या कर लेता है लेकिन सरकार तो भावुक नहीं है, सरकार को भावुक होना भी नहीं चाहिए!क्योंकि भावनाओं में बहकर फैसले लिये भी नहीं जाते और फिर यदि किसान के साथ सरकार भी भावुक हो गई तो किसान तो आत्महत्या कर मुक्ति पा जाएगा किन्तु बेचारी सरकार क्या करेगी!सामान्यतः सरकारें आत्महत्या नहीं करती;उनकी तो हत्या कर दी जाती हैं!सरकार आत्महत्या क्यों करें,सरकार तो सरकार है और वैसे भी उसपर कोई एक अकेले वर्ग,समूह,कौम की जवाबदारी तो रहती नहीं है;उसे सम्पूर्ण समाज का ध्यान रखना होता है क्योंकि वोट की खान पूरा समाज जो है।
हाँ,मंत्रीजी के बयान में एक प्रश्न जरूर अनुत्तरीत ही रह गया कि एक प्रदेश का किसान भावुक है तो खुदकुशी का कदम उठा लेता है लेकिन देशभर के कई हिस्सों में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और यह सब आज से नहीं,वर्षों से बदस्तुर जारी है, सरकारें आती हैं,चली जाती हैं किन्तु किसान आत्महत्या करने जैसे कदम उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं तब क्या यह माना जाए कि देश के अन्य हिस्सों के किसान भी भावुक हैं या फिर वे भावुक नहीं हैं और इसीलिए आत्महत्या कर लेतेे हैं।
वैसे किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या के लिए पहले कई माननीयों ने अलग-अलग कारण गिनाये हैं।कोई यह बता रहा था कि किसान पारिवारिक कारणों से आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं तो कोई कह रहा था कि बीमारी की वजह से किसान आत्महत्या कर लेते हैं।सरकारी पक्ष ठोस माना जाता है वरना तो विरोधियों को कुछ न कुछ बहाना चाहिए और सरकार को बदनाम करने के लिए कह देते हैं कि कर्ज से परेशान होकर किसान आत्महत्या कर रहे हैं या फिर फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाने की वजह से किसान अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं।
यहाँ यह विचार भी आता है कि भावुक का मतलब तो सोचने समझने वाला,भला आदमी,भावों के वशीभूत होने वाला,सज्जन,जज्बाती,संवेदनशील,उत्तम भावना रखने वाला,उत्तम बातें सोचने वाला से है तब ऐसा भला व्यक्ति आत्महत्या कर दूसरों को दुख कैसे पहुँचा सकता है!कहीं ऐसा तो नहीं कि भावुक होने का किताबी अर्थ ही गलत हो और मंत्रीजी ने उसे सही अर्थों में समझा हो और तदनुसार ही कहा हो।यह भी हो सकता है कि कवि,लेखक,साहित्यकार भी इस किताबी परिभाषा के कारण ही भावुक,भावनाप्रधान,संवेदनशील बने और कहलाते आ रहे हों वरना आत्महत्या का कदम उठाने में तो पहला नम्बर इन्हीं का होना चाहिए था!हम कवि,लेखक,साहित्यकार भी झूठमूठ के ही भावुक हैं वरना यदि सच्चे रूप में भावुक और संवेदनशील होते तो इस विषय पर स्वर्गलोक से लिखकर चिठ्ठी या ईमेल भेजते।नहीं क्या!

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009