कविता

सरहद

सरहद कोई लकीर नही
है हर दुश्मनी का आगाज़।
जहाँ खिंच जाती है यह
बन जाती है वहाँ दीवार।
दो मुल्कों की दोस्ती को
बना देती है बेजान।
खून के मिट्ठे रिश्तो को भी
चखा देती है नीम का स्वाद।
भाईचारे के संदेश को भी
चटा देती है यह धूल।
इसीलिए…
सरहद कोई लकीर नही
है हर दुश्मनी का आगाज़।
– श्रीयांश गुप्ता

श्रीयांश गुप्ता

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