कविता

संसद

संसद लोकतंत्र का है तीर्थ स्थान
सब मिल कर रक्खें इसका मान
यहाँ देश की ऐसी बने नीति
इस राष्ट्र की हो चहूंमुख प्रगति
सब भूल के अपना निज स्वार्थ
आओ करें अपने भारत की बात

जब लोकतंत्र है भारत में
फिर खुल कर बोलो संसद में
संसद में अपना रखो पक्ष
सत्ताधारी हो या हो विपक्ष
जब नहीं चलेगी यहाँ कार्यवाही
फिर संसद यहाँ किस कIम आई
मत बदलो सविंधान की परिभाषा
सविधान में निहित है हर आशा

जनता को जागृत होना है
सच्चाई को नहीं खोना है
भ्रष्ट को कोई वोट न दो
वोट के बदले नोट न लो
अपनी ताक़त को पहचान
जनतंत्र में पूरी डालो जान

भ्रष्टाचार का कर दो अंत
तभी देश कहलायेगा स्वतंत्र
बन जायेगा सच्चा गणतंत्र
और छा जायेगा लोकतंत्र.

— जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845