गज़ल
कुछ पता ही ना चला कैसे, कहां, किधर गई चार दिन की ज़िंदगी ना जाने कब गुज़र गई एक-एक करके
Read Moreपता नहीं तब अपोलो या एम्स जैसे अस्पताल थे या नहीं, लेकिन बचपन में अखबारों में किसी किसी चर्चित हस्ती
Read Moreइंद्रधनुष सा प्रेम मेरा रंगों से परिपूर्ण है ठीक वैसे ही जैसे जिन्द्गी एक रंगमंच जहा रोज़ नये रंग मंच
Read Moreसड़क पर एक लड़के को रोटी हाथ में लेकर आते देख अलग-अलग तरफ खड़ीं वे दोनों उसकी तरफ भागीं। दोनों
Read Moreदशानन की तरह.. ओढ़ अनेकानन खुद का अस्तित्व छुपा जाते हो तुम क्या जतलाना चाहते हो ? दिल में छुपा
Read Moreमर्यादा की बेड़ियाँ… तोड़ती सड़ी-गली परम्पराएँ… पीछे छोड़ती । सदियों से बिछे हुए… जाल हटाती तोड़ चक्रव्यू… नये ख्वाब सजाती।
Read Moreतुम मेरे मम्मी-पापा हो, यह मैं सब से कहती हूँ। हर पल हर क्षण मेरे पापा, आप के दिल में
Read Moreभूल गया है रेडियो, अब तो सारा देश। टीवी पर ही देखते, दुनिया के सन्देश।। लाये फिर से रेडियो, मेरे
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