नई भोर की ओर
रोज़ सुबह छोटू को गोद में उठाकर ग्राहकों को दूध देने जाना कमली का रोज़ का नियम था. हमेशा की तरह आज भी सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर कजरी का दूध चुआ. बहुत दिनों बाद आज कजरी ने जी भरकर दूध दिया था. कल शाम कमली ने खुद भी जी भरकर खाना खाया था और कजरी को भी जी भरकर खली-दाना डाला था. नोटबंदी के चलते कुछ दिन घर में पड़ी नगदी से किसी तरह काम चल गया था. नगदी की तंगी से ग्राहकों ने पहले पैसे देना बंद किया और फिर दूध लेना. बिना पैसों के कमली कैसे परिवार को खिलाती और कैसे कजरी का पोषण करती! कल उसके मरद को नोट बदलवाने की लाइन में लगने के चार सौ रुपए मिल गए थे. सौदा-सुलुफ भी वह ले आया था, उसके चलते सबके पेट भर गए थे. कुछ दिन तक सिगरेट और शराब न मिलने के कारण उसके मरद की सिगरेट और शराब की तलब भी शांत हो गई थी और घर में शांति हो गई थी. उसने छोटू को काला टीका लगाया और गोद में उठाकर दूध देने चली गई. अब बैंकों और एटीएम की लाइनें भी छोटी होने लगी थीं, इसलिए कमली को आज ग्राहकों से दूध के पैसे नगद मिलने की उम्मीद भी थी.
पायल खनकाती वह नई भोर की ओर चली जा रही थी.
आदरणीय बहनजी ! नोटबन्दी की विषमताओं को झेलने के बाद एक नए भोर का उदय तो अपेक्षित ही था । इसी नोटबन्दी की त्रासदी को उजागर करती सुंदर रचना के लिए धन्यवाद ।
लीला वहन को सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई ।
प्रिय शशि कांत भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपको बधाई के लिए बधाई. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
लीला बहन , नइ भोर की ओर चलने की हम भी कोशिश करेंगे .सुन्दर रचना
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने सच ही कहा है- हम भी नई भोर की ओर चलने की कोशिश ही कर सकते हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
हम भी चल पड़े हैं नई भोर की ओर. नई उमंगों-तरंगों-अपेक्षाओं-आकांक्षाओं के साथ नई भोर, नए सप्ताह, नए महीने, नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.