गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

प्यार तुमसे जताती रही रात भर

जाग सपने सजाती रही रात भर

तुम न आए बहुत बेसहुर से लगे

मौन महफिल नचाती रही रात भर॥

बेरहम थी शमा आग बढ़ती गई

लौ जली को बुझाती रही रात भर॥

तक रही थी लिए पीर परछाइयाँ

धुन्ध छायी हटाती रही रात भर॥

ठंड लगने लगी जब बदन पे मिरे

थक खिलौना सुलाती रही रात भर॥

भोर हँसने लगी शोर डँसने लगी

प्रात दिन गिन लजाती रही रात भर॥

गरज गौतम किवाड़ी खुली रह गई

ननद बैरन चिढ़ाती रही रात भर॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ