कहानी

“यादों के झरोखों से”

“यादों के झरोखों से”

समय आकर निकल जाता है और हम नए कलेवर में प्रतिदिन न जाने कितने रंगों मे खुद को रंगा हुआ पाते हैं, किसने रंगा, कब रंगा और क्यों रंगा यह तो तब पता चलता है जब या तो आईना हमारे पास आता है या हम खुद आईने के पास जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ, जीवन रथ में लगा ही था, खींचें जा रहा था उस भार को जो था तो खुद का ही पर ऐसा लग रहा था कि मैं तो खीँच ही रहा हूँ तो यह भार किसी और का ही होगा जिसको खींचने की जवाबदारी मेरे शिर आई है और जिसे इच्छा अनिच्छा से खींचना ही होगा। अपने अरमानों को बगल की थैली में समेटे जोर लगाए जा रहा था कि किसी ने मेरी थैली से उछलकर एक कागज का टुकड़ा दूर जा गिरा जिसपर मैन ही कुछ शब्दों को कविता की शक्ल देने के लिए अपने विचारों की स्याही से समेट लिया था। खुदा न खास्ता वह टुकड़ा जिसके हाथ में पड़ा वह मेरे अपने थे। मेरी अमानत मुझे लौटाते हुए खिझियाकर उलाहने के तौर पर बोले, बरखुरदार लिखने का इतना ही शौक है तो एक ब्लॉग बनाकर वहाँ लिखो। तभी से लिखने का क्रम चलता रहा। फेसबुक के माध्यम से युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के अध्यक्ष आदरणीय श्री रामकिशोर उपाध्याय जी और आदरणीय श्री ओम प्रकाश शुक्ल जी से मुलाक़ात हुई, लिखते पढ़ते बहुत से मित्रों से परिचित हुआ और जय विजय सरीखे तमाम मंच के मुखिया का स्नेह मिलता गया। अग्रजों- अनुजों का सलाह सूचन अंगीकार करता गया, देखते देखते आज चार वर्ष का समापन 2017 के साथ पूरा होने के कगार पर है। यह शानदार वर्ष मेरे लिए बहुत ही फलदाई रहा जिसके प्रताप से नव वर्ष 2018 का शुभागमन सबके लिए उत्तरोत्तर प्रगतिमयी हो, व नए कीर्ति को स्थापित करे।

“कुंडलिया”

नूतन वर्ष सनेह का, लेकर मिलिए आस

सत्रह के आशीष से, हो अट्ठारह खास

हो अट्ठारह खास, रास मन आए साजन

मिल जाए संतोष, न पीड़ा दे कुल भाजन

गौतम तेरे हाथ, न आए कचरा जूठन

अन धन की बरसात, वस्त्र हो सारे नूतन।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ