सामाजिक

लेख– संविधान हमें जीवन जीने का अधिकार देता है।

संविधान हमें जीवन जीने का अधिकार देता है। तो उसके साथ संविधान की धारा-47 सबके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराए जाने की बात करता है। जिसके मुताबिक सबको सस्ती, उत्तम स्वास्थ्य सेवाएं, सुरक्षित पेयजल, पर्याप्त पोषण मिलना चाहिए। इन सुविधाओं को मिलने में किसी तरीके की रुकावट जैसे जाति, धर्म, लिंग या समुदाय के आधार पर नहीं आनी चाहिए। ऐसे में क्या महिलाओं को स्वास्थ्य की सुविधाएं अच्छी तरह से प्राप्त हो सकी है, उत्तर अनुत्तरित ही लगता है। देश और प्रदेश में महिलाओं के अधिकारों की बात तो होती रहती है, लेकिन उनको वह अधिकार सच्चे अर्थों में प्राप्त नही हो पाता। वैसे देश में सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाना हाथ पर सरसों उगाने की कहानी को चरितार्थ करने जैसा है, क्योंकि देश और प्रदेशों में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था ख़ुद अभावों के कारण वेंटीलेटर पर नज़र आती है। ऐसे में अगर बात सिर्फ़ मध्यप्रदेश की हो। उसमें भी बात सिर्फ़ महिलाओं में खून की कमी की, तो महिलाओं की दशा काफ़ी दयनीय मालूम पड़ती है। सूबे में महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने के लिए लालिमा जैसी स्वास्थ्य योजनाएं चल रहीं हैं, लेकिन उसके परिणाम धरातल पर दिखते कम ही हैं।

सूबे में जच्चा-बच्चा कुपोषण के डंक से पीड़ित तो यह ही, एनीमिया जैसे रोग घाव को औऱ नासूर करते प्रतीत होते हैं। बीते दिनों की मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला दे, तो कुपोषण का कलंक झेल रहा मध्य प्रदेश महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में पिछड़ता नजर आता है। बीते दिनों सतना जिले की महिलाओं और किशोरी बालिकाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया, जिसमें गर्भवती महिलाओ में से 70 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार पाई गईं। शायद यहीं तस्वीर पूरे देश और प्रदेश की है। महिलाओं में एनीमिया रोग की शिकायत बढ़ती जा रहीं हैं। जिस पर नियंत्रण हमारी व्यवस्था भी नहीं पा पा रही। सतना जिले की 45 हजार गर्भवती महिलाओं में से 70 प्रतिशत महिलाएं रक्त अल्पता से पीड़ित मिलीं। जिसका मुख्य कारण महिलाओं को पौष्टिक आहार न मिल पाना है। आदिवासी और ग्रामीण परिवारों की स्थिति बेहद ही खराब है। ऐसे में लालिमा अभियान भी अगर अपनी लालिमा बिखेर नहीं पा रहा, तो सरकारी योजना का अर्थ वही ढाक के तीन पात समझ में आता है।

केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-चार के मुताबिक सूबे के 69 फ़ीसद बच्चे और 52 फ़ीसद महिलाएं एनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चों में एनीमिया का कारण गंदगी और महिलाओं को संतुलित आहार न मिलना है। ऐसे मे एनीमिया एक साधारण समस्या है, लेकिन जागरूकता का अभाव इससे निपटने की दिशा में संकट बन रहा है। तो क्यों न राज्य सरकार एनीमिया से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर शिविर आदि लगाकर लोगों को जागृति करें। खून की कमी कैसे दूर हो सकती है, उसके लिए भोजन में क्या लिया जाए, उससे ग्रामीण और अशिक्षित महिलाओं को अवगत कराया जाए। इसके साथ ग़रीब और आदिवासी महिलाओं के लिए आयरन की गोलियां औऱ संतुलित आहार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार अपने जिम्मे ले, साथ में सरकारी नियमों को सख़्त करें, जिससे योजनाओं में धांधलेबाजी आदि बंद हो। तब जाकर स्थिति में कुछ सकारात्मक बदलाव दिख सकता है।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896