कविता

जिंदगी

कल एक झलक जिंदगी को देखा
वो राहों में मेरी गुनगुना रही थी!
छिप जाती रह रह कर
आँख मिचौली खेलती मुस्कुरा रही थी।
एक अरसे के बाद यारों आया मुझे करार
वो सहला के गोद में मुझे सुला रही थी!
हम दोनों क्यूं खफा खफा इक दूजे से
मैं उसे और वोह मुझे समझा रही थी!
मैने पूछ ही लिया …
क्यों इतना दर्द दिया कमबख्त तूने?
वोह मुस्कुराई और बोली
मैं जिंदगी हूं
तुझे जीना सिखा रही थी!
तुझे जीना सिखा रही थी।

— विजेता सूरी ‘रमण’
3-1 -2018

विजेता सूरी

विजेता सूरी निवासी जम्मू, पति- श्री रमण कुमार सूरी, दो पुत्र पुष्प और चैतन्य। जन्म दिल्ली में, शिक्षा जम्मू में, एम.ए. हिन्दी, पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक उपाधि, वर्तमान में गृहिणी, रेडियो पर कार्यक्रम, समाचार पत्रों में भी लेख प्रकाशित। जे ऐंड के अकेडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेजिज जम्मू के 'शिराज़ा' से जयपुर की 'माही संदेश' व 'सम्पर्क साहित्य संस्थान' व दिल्ली के 'प्रखर गूंज' से समय समय पर रचनाएं प्रकाशित। सृजन लेख कहानियां छंदमुक्त कविताएं। सांझा काव्य संग्रह कहानी संग्रह प्रकाशित।