ब्लॉग/परिचर्चा

सदाबहार काव्यालय-21

कविता

रोको अन्याय के धारों को

 

मत रोको इन बरसातों को

दो भीगने तन-मन-प्राणों को

माना कपड़े गीले होंगे

सड़कों के नट ढीले होंगे

हिल जाएंगी नदियों की दाढ़ें भी

आएंगी कुछ-कुछ बाढ़ें भी

पर सींचेंगी भू के तारों को

सींचेंगी सूखे-ख़ारों को

आने दो अब बरसातों को

मत रोको इन बरसातों को.

 

मत रोको अश्रुधारों को

होने दो तरल मन-तारों को

ये रुककर हिमकण बन न सकें

ये रूप बांध का ले न सकें

फिर लेंगे रोक ये भावों को

अंतरतम के प्रस्तावों को

बाधित न करें दिल-तारों को

नियंत्रित न करें शुभ भावों को

बहने दो अश्रुधारों को

मत रोको अश्रुधारों को.

 

मत रोको रहमत-धारों को

प्रभु की आशीष के तारों को

इनसे झंकृत तन-मन कर लो

आशीषों से झोली भरलो

हरो दीन-दुखी की विपदाएं

करो दूर कंटीली बाधाएं

फिर प्रभु तुमको हर्षाएंगे

रहमत-धारे बरसाएंगे

झरने दो रहमत-धारों को

मत रोको रहमत-धारों को.

 

रोको अन्याय के धारों को

पथ-अनय पे चलने वालों को

रोका न गर तो दुख होगा

सुख का पथ फिर बाधित होगा

जीवन में अंधेरा छाएगा

रवि ज्ञान का फिर छिप जाएगा

मत झेलो इनके वारों को

छिड़ने दो न्याय के तारों को

मत रोको न्याय-उजालों को

रोको अन्याय के धारों को,

रोको अन्याय के धारों को.

 

लीला तिवानी

 

Website : https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “सदाबहार काव्यालय-21

  • इंसानियत (कविता)
    इंसान ने कहा कि मैं न्याय हूं
    इसान ने कहा कि मै अन्याय हूं ।
    अंत में इंसान ने कहा कि आज किसी में इंसानियत नहीें ।
    उधर ये सुनकर सभी पालतू जानवर
    गाय, कुत्ता, बिल्ली, बकरी
    इंसानों पर हंस रहे थे।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर रचना लीला बहन .

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! हमेशा की तरह एक और अप्रतिम अति सुंदर रचना के लिए आपका धन्यवाद !
    रोको अन्याय के धारों को,रोको अन्याय के धारों को । वाह !

  • लीला तिवानी

    अन्याय,शोषण, भेदभाव को सहना सीख लिया है
    पत्थरों की तरह जीना लोगों ने सीख लिया हैं

    अंधे,बहरे,गूंगे की तरह ज़ीना सीख लिया है
    ज़मीर अपना गिरवी रखना लोगो ने सीख लिया है

    रोशनी की एक किरण भी नही रही दिल में
    इंसानियत को छोड़ना लोगों ने सीख लिया है

    अन्याय,शोषण,भेदभाव की नाइंसाफी को सहते सहते
    अपनी इंसानियत को बेचना लोगों ने सीख लिया है

    इंसान ने अपने अपने अंदर की कमियों को छोड़कर
    दूसरों की कमियो को गिनना लोगों ने सीख लिया है-

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