राजनीति

लेख– तमिल सियासत का फ़िल्मी दुनिया से गहरा रिश्ता रहा है”

दक्षिण के दुर्ग तमिलनाडु का इतिहास साक्षी रहा है, कि वहां की भौगोलिक राजनीति फ़िल्मी सितारों से दूर नहीं रहीं। अम्मा के निधन से तमिलनाडु की सियासत में जो कमी उभरी थी, उसी फ़िल्मी पृष्ठभूमि को पूर्ण करने के की दिशा में रजनीकांत ने राजनीतिक कदम बढ़ा दिया है। एक छत्र राज्य करने वाली जयललिता यानी अम्मा तमिलनाड़ू के गरीब और दलित तबके के साथ सबको साधते हुए छह मर्तबा मुख्यमंत्री रहीं। जिस हिसाब से तमिलनाडु की राजनीति से फिल्मी सितारों का जुड़ाव लगातार रहा, उसी परम्परा को चेन्नई के राघवेंद्र हॉल में अपने राजनीतिक जीवन का एलान करके रजनीकांत ने शुरु किया है। साथ में लंबे समय से चल रहे राजनीति में आने का राजनीतिक कयास भी दरकिनार किया है। जयललिता की मौत के बाद दक्षिण के दुर्ग तमिलनाडु में उभरे सियासी शून्य को भरने का काम रजनीकांत ने किया है। कावेरी जल विवाद को लेकर हुए आंदोलन में भी उनकी हिस्सेदारी रहीं है, और उनकी स्वच्छ-साफ़ छवि और सामाजिक सरोकार की भावना की पैरवी करती है।

रजनीकांत ने स्वीकार किया है, कि राज्य की सियासी बिसात अच्छी नहीं चल रहीं है, और अगर वे अपने घोषणपत्र को पूर्ण करने में असमर्थ रहेंगे, तो राजनीति छोड़ देंगे। रजनीकांत के इस बयान से दो बातें स्पष्ट होती है, पहली कि वे भी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं से ग्रषित दिख रहें हैं। दूसरी अगर सकारात्मक पहलू देखा जाए, तो स्वच्छ विचारों से बंजर हो चुकी तमिल सियासी भूमि में जनसरोकार की राजनीति को प्राश्रय मिल सकता है। पिछले दशकों की राजनीति गवाह रही है, कि तमिल सियासत में द्रविड़ों की राजनीति हावी रहीं, और राष्ट्रीय दलों की मौजूदगी शून्य ही रहीं है। हिंदी के विरोध के नाम पर चालू हुई राजनीति तमिलनाडु में इस हद तक पहुँच गई, कि भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुँच गया। अब जब रजनीकांत ने अपनी पार्टी गठित करने का ऐलान कर दिया है, तो उनके भाषण से यह स्पष्ट है कि तमिलनाडु की सियासत में बात अब जातिवाद की नहीं, शायद भ्रष्टाचार मुक्ति और सुशासन की होगी। वहीं अब नया प्रश्न यह खड़ा हो गया है, कि आने वाले समय में तमिल की सियासत किस करवट बैठेगी, क्योंकि अभी तक यहीं कहा जा रहा था कि रजनीकांत भाजपा के साथ जुडेंगे। जो होता दिख नहीं रहा। रजनीकांत ने आने वाले चुनाव में तमिलनाडु की सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करके यह साबित करने की कोशिश की है, कि वे किसी राजनीतिक दल का हिस्सा न बनकर अम्मा की तरह अपनी जमीं तलाशेंगे।

वैसे तमिलनाडु की राजनीतिक भूमि का लगाव फिल्मी सितारों से काफ़ी पुराना रहा है। तमिल राजनीति में यह कहना अतिश्योक्ति न होगा, कि लोगों का फिल्मी सितारों के प्रति भावनात्मक, सामाजिक जुड़ाव के साथ राजनीतिक भविष्य भी ज्यादा सुरक्षित समझ में आता है। तभी तो पहले एमजी रामचंद्रन और बाद में जे. जयललिता फ़िल्मी दुनिया के बाद राजनीति का हिस्सा बनी। साथ ही साथ सत्ता की कुर्सी तक पहुँच भी बनाई। इसके इतर अगर एम.करुणानिधि के शुरुआती समय पर निगाहें डालें, तो पता चलता है, कि उन्होंने भी तमिल फिल्मों के लिए पटकथा लेखन से अपने जीवन की शुरूआत की थी। उसी राह पर अब रजनीकांत निकल पड़े हैं। इसके साथ जब एआईडीएमके में दो फाड़ होने के साथ बीते दिनों जिस हिसाब से कनिमोझी और  ए. राजा को घोटाले से बरी किया गया, उसके बाद दक्षिण की राजनीति ने नया मोड़ ले लिया है। जयललिता जहां अपने कार्यकाल के शुरूआती दौर से ही अपने बूते विकास और राजनीतिक कूटनीति पर चलते हुए ऐसा माहौल बनाया, कि तमिलनाड़ू की राजनीति ही क्या उनकी पार्टी में भी उनके बाद कोई बड़ा राजनेता खड़ा नजर नहीं आया। वर्तमान में भाजपा जिस अंदाजे -बयां में सियासीलीला को खेल रही है, उससे ऐसा अंदाजा लगाया जा सकता है, कि भाजपा असम की भांति दक्षिण के दुर्ग को भेदने की ओर नई रणनीति चल सकती है। वैसे कांग्रेस की बात की जाए, तो उसका वाजूद राष्ट्रीय स्तर पर जब नेतृत्व के अभाव में दरक रहा है, फिर क्षेत्रीय राजनीति में उससे कोई कारनामा करना टेड़ी खीर साबित होने वाला लगता है। कांग्रेस रणनीतियों को बनाने की कोशिश तो कर रही है, लेकिन लोगों का विश्वास कही न कही कांग्रेस की कार्यकुशलता और नीतियों से ताल्लुक़ात रखती नजऱ नहीं आती। वह बात चाहे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में हो, या क्षेत्रीय राजनीति में नेतृत्व का अभाव साफ नजर आता है, फिर दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस को अपना वाजूद निर्मित करने में काफी समय लग सकता है। 

वैसे डीएमके के एम करूणानिधि भी 93 साल के हो चुके है, फिर दक्षिण के दुर्ग को साधाने के लिए नई रणनीति और चेहरे की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जिसके लिए द्रविड़ जाति को साधने वाले इन सियासी क्षेत्रीय दलों के पास चेहरे की कमी और लोकप्रियता स्पष्ट देखी जा सकती है। जिसे मोदी सरकार एक हद तक  गरीबों और आम जनता में अपनी पैठ मजबूत करके साबित कर सकती है। जिस दिशा में भाजपा आगे बढ़ भी रही है। अम्मा की मौत के बाद से एआईडीएमके में दो फाड़ हो चुका है। जो यह साबित करता है, कि तमिल राजनीति में भारी उथलपुथल का दौर चल रहा है। इसके साथ आरके नगर उपचुनाव में शशिकला के भतीजे और निर्दलीय उम्मीदवार दिनकरन की जीत ने भाजपा को संकेत दे दिया है, कि बिना सारथी के दक्षिण के दुर्ग जीतना उसके लिए भी आसान नहीं होने वाला। ऐसे में अगर डीएमके भाजपा के साथ आ जाती है, जिसके राजनीतिक कयास भी लगाए जा रहें हैं, तो भाजपा के लिए बात आने वाले समय में बन सकती है, क्योंकि जब बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी चेन्नई यात्रा के दौरान अचानक डीएमके के मुख्य करुणानिधि से मिलने पहुंचे, तो राजनीतिक गलियारों में उसकी चर्चा भी हो रहीं है। वैसे इतिहास के पन्नों की खोजबीन करें, तो 1999 से 2004 के बीच वाजयपेयी कार्यकाल में डीएमके ने भाजपा को समर्थन किया था। इसके इतर 2016 के विधानसभा चुनाव में डीएमके गठबंधन को 98 सीटें मिली थी, इस लिहाज से डीएमके भी अपना रास्ता भविष्य में बनाना चाहेंगी। जिसके लिए वर्तमान में भाजपा से गठबंधन करना उसके लिए फायदेमंद हो सकता है। 

 

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896