गीत/नवगीत

गीत – हंस हुए निष्कासित अब

उजले-उजले लोगों के मन कितने मैले-मैले।
रूप सभी का एक मगर अलग-अलग हैं थैले।।

स्वार्थ, वाद उर भीतर बैठा, मन में अब प्यार नहीं।
प्रीति-रस, गंध से रचा बसा क्या यह संसार नहीं।
रक्षक बन तक्षक हैं बैठे, चहुंओर भेड़िये फैले।।

है अपना, कौन पराया, सब रिश्ते-नाते झूठे।
अर्थ, पद के चहुंओर घूमते, रहते रूठे-रूठे।
बंधु, मित्र, पुत्र बन जाते, आस्तीन के सांप विषैले।।

काले-काले दिन देखे हैं, उजली-उजली रातें।
अपनों को भी करते देखा बदली-बदली बातें।
हंस हुए निष्कासित अब, सम्मानित काक वनैले।।

खूंटी पर टंगे हुए मानवीय आदर्श सुनहरे।
सच्चाई की जिह्वा पर दिवस-निशा रहते पहरे।
हत्यारे, चोर, डकैत घूमते, सजकर बन छैले।।

— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com