कविता

कविता : हाँ मैं वेश्या हूं

हाँ मैं वेश्या हूं
पाप की पुड़िया हूं
चंद सिक्कों की खनक में
बेचती हूं अपना जिस्म
पर
लाख अच्छी हूं
इन नर्तकियों /मॉडलों/विश्वसुंदरियों से…

मैं बचाती हूं
उन नन्हीं – नन्हीं कलियों को
खूनी, वहसी, दरिन्दों/शैतानों/हैवानों से…

समाज देता है
गाली मुझे
और उन वेशर्म रंडियों का फोटो
बैडरूम में सजाता है
अभिनेत्रीयां कहता है
जो अधनग्न कमर मटकाती हैं,
स्तन दिखाती हैं
इंसान के अंदर शैतान जगाती हैं
और मैं उसी शैतान को
इंसान बनाती हूं…

हाँ मैं वेश्या हूं
और लाख अच्छी हूं…

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

(नोट- इस रचना का उद्देश्य वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देना कतई नहीं है।)

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111