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सदाबहार काव्यालय-25

गीत

 

मन के दीप जला दे भगवन

 

दीप बहुत-से जला चुकी हूं, हुआ न दूर अंधेरा,

जीवन बीत रहा है निशिदिन, करके तेरा-मेरा।

कृपादृष्टि जब हो तेरी तब, तू-ही-तू दिख जाए,

मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥

 

 

कभी न आई पास तुम्हारे, भटकी द्वारे-द्वारे,

सबकी आस लगाई पल-पल, अब तो नयना हारे।

अश्रुकणों को तेल बना जो, किरणों को फैलाए,

मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥

 

 

आने को है अंतिम क्षण, पर मैं तैयार कहां हूं,

तनिक समय दे चरणोदक से, मैं चुपचाप नहा लूं।

राह कौन-सी आऊं जिससे, तू मुझको मिल जाए?

मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥

 

 

नहीं बुद्धि है, बल भी कम है, साधन भी सीमित हैं,

चारों ओर अंधेरा छाया, उज्ज्वलता परिमित है।

तू प्रकाश के सुमन खिला दे, क्षीण वदन मुस्काए,

मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥

 

लीला तिवानी

 

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सदाबहार काव्यालय-25

  • लीला तिवानी

    मन के दीप जल जाएं, तो भीतर-बाहर रोशनी-ही-रोशनी है.

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