कहानी

कहानी- सासू माँ

एक सन्त अपने प्रवचनों की श्रृंखला में प्रवचन दे रहे थे साथ ही भक्तों की जिज्ञासाओं का समाधान भी कर रहे थे। इसी क्रम में किसी नववधू ने अपनी भावना या यों कहें कि अपनी जिज्ञासा मुनिराज के समक्ष रखी कि-‘‘हैं गुरूदेव सासू माँ बहू व बेटी में अन्तर क्यों करती है। जब बेटी अपने पीहर आती है तो सासू जी कहती है कि मेरी बेटी यहाँ कोई काम नहीं करेगी, ये मेरी रानी बिटिया है और यहाँ आराम करने आई है आदि-आदि। सारा काम का बोझ बहू पर डाल दिया जाता है और बहू पीहर भी जाना चाहती है तो उस पर रोक लग जाती है। आखिर बहू भी तो किसी की रानी बेटीहै। फिर बहू और बेटी में यह फर्क क्यों?
गुरूदेव ने प्रश्न को सुना, कुछ सैकण्ड चुप्पी साधी और फिर उस नववधू महिला के प्रश्न का समाधान इस प्रकार दिया कि आपका प्रश्न गम्भीर है और इस प्रकार की समस्याएं है इसलिए हमें प्रवचन देने पड़ते है। अगर सास को बहू मे बेटी नजर आ जाए तो सारी समस्या का स्वतः ही समाधान हो जाए। उसके पश्चात् गुरूदेव ने यथार्थ घटना को उदाहरण के रूप में सुनाया।

रक्षाबन्धन के त्यौहार के कुछ दिन पूर्व एक भाई अपनी बहन को लेने उसके ससुराल गया। वहाँ पहुँचकर उसने बहन की सास से जो उस समय विदेश में रह रही अपनी बेटी से मोबाईल पर बात कर रही थी निवेदन किया कि रक्षाबन्धन का त्यौहार नजदिक है मेरी बहन कई दिनों से अपने पीहर नहीं गई सो मैं इसे ले जाने आया हूँ। कृपया आप इसे ले जाने की आज्ञा प्रदान करें। सास ने सुना और पलटकर उत्तर दिया मैं तुम्हारी बहन को किसी भी स्थिति में अभी नहीं भेज सकती क्योंकि मेरी बेटी अमेरिका से आ रही है वो कुछ दिन यहाँ रहेगी, आराम करेगी ऐसे में घर का काम-काज कौन करेगा? अतः आप इसे नहीं ले जा सकते। भाई बहुत सज्जन थे। शालीनता से बोले मैं पूरे एक वर्ष बाद इसे लेने आया हूँ। हमारी मां-पिताजी व अन्य लोग सब चाहते है कि त्यौहार के बहाने बहन-बेटी से मिल लिया जाए, सारा परिवार इसका इन्तजार कर रहा है, सबकी आशाएं टूट जायेगी और फिर मैं इसे राखी के अगले दिन छोड़ जाऊँगा। सास ने उनकी बात को सुना और तुरन्त उत्तर दिया कि मेरी बेटी भी तो बरसों में आ रही है अतः इसे किसी भी स्थिति में नहीं भेजा जाएगा और अगर ले जाना हो तो हमेशा के लिए ले जाओ इसे वापस यहाँ मत लाना। अब भला वो भाई क्या कहता या करता धर्म संकट में पड़ गया, संस्कारी था कोई उत्तर नहीं दिया सिर झुकाकर चला गया। बहन भी यथा गुणों से सम्पन्न थी। सब सहन कर काम में लग गई। सासू माँ अपनी बेटी की अगवानी में लग गई। वो बहुत प्रसन्न थी। सपने में खो गई।
कहते है कि कर्म बड़ा निर्दयी/बलवान होता है वो किसी को नहीं छोड़ता जो जैसा करता है उसे वैसा ही भुगतना पड़ता है किसी को तुरन्त तो किसी को बाद में। और यहाँ भी ऐसा ही हुआ। कर्मो का खेल शुरू हुआ। कर्म ने अपना जाल बुनना शुरू किया। जब वह महिला (सास) अपनी बेटी के स्वागत की रूपरेखा तैयार कर रही थी कि बेटी का विदेश से फोन आया। माँ ने तुरन्त उठाया बेटी बोले उससे पहले ही माँ ने बोलना शुरू कर दिया कि-बेटा तू कब व कैसे आएगी बता जिससे मैं सारी तैयारी कर सकूं वो बोलती ही गई लेकिन उधर से जवाब नहीं आया। माँ ने पूछा कि बता बेटा तू चूप क्यों है? तू कब कैसे आएगी तब फोन पर रूंआसी सी मन्द आवाज आई-माँ मैं नहीं आ पांऊगी। माँ सन्न रह गई, उसकी श्वास ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे रह गई, उसे विश्वास नहीं हुआ कि सुबह तो यह आने की कह रही थी और अब…। उसने पुनः पूछा तो बेटी ने बताया कि माँ सब कुछ ठीक ही था। मेरी पूरी तैयारी थी। सासू माँ व मेरी पति ने भी मुझे स्वीकृति प्रदान कर दी थी लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि मेरी सास ने कहा, ‘‘उसकी बहन बरसों बाद यहाँ आ रही है वो त्यौहार यहीं बनाएगी। इसलिए तू पीहर मत जाना।’’

जब मैंने कहाँ कि माँ में भी तो कही बरसों बाद अपने पीहर जा रही हूँ और आपने ही तो मुझे अनुमति प्रदान की थी। अब यह क्या? सब लोग मेरा इन्तजार कर रहे होगें आदि-आदि। तब सास गुस्से में बोली कि तुझे समझ में नहीं आता क्या मेरी बेटी आ रही है। मैं उसके साथ खूब बातें करूंगी, घुमूंगी आदि। ऐसे में घर का काम कौन करेगा और फिर भी तुझे जाना है तो जा लेकिन वापस लौटकर मत आना। बेटी यह सब बात अपनी माँ को फोन पर बता रही थी तभी माँ को याद आया कि यह सब बात तो मैंने अपनी बहू से कही थी। उसे भी मैंने इसी प्रकार जाने से रोका था, हमेशा के लिए जाने को कहा था। माँ कुछ न कह पाई उसने बेटी की बात पूरी की और कहा कि बेटी जैसी तेरे परिवार की इच्छा।

अब वह सास सोच में पड़ गई। उसे कुछ भी समझ नहीं आया उसने विचार किया कि मैंने मेरी बेटी के आने पर स्वागत के लिए जो कल्पना की थी को ही सब उसकी बहू के घरवालों ने भी की होगी, जितना दुःख व पीड़ा मुझे हो रही है उतनी ही उसके घरवालों को भी हुई होगी। वो सोच में खोई हुई ही थी कि उसने एकाएक बहू को आवाज लगाई, बहू के आने पर उसने कहा बेटा तू अपने पीहर जाना चाहती थी ना। बहू बोली-हाँ जाना तो चाहती थी लेकिन आपने…। बहू बात पूरी कर पाती इससे पहले ही सासू माँ बोली जा जाने की तैयारी कर सामान जमा। बहू बोली माँजी मेरा भाई तो चला गया मैं अब कैसे जाऊंगी और आपने मना किया तो मैंने अपने मन को मना लिया था कि मेरी ननद जी आ रही है। अबकी बार मैं इनके साथ ही रहूंगी। तब सासू माँ बोली नहीं बहू तू पीहर जाएगी और मैं स्वयं तुझे छोड़ने जाऊंगी, चल तू सामान जमा।

बहू आश्चर्य में पड़ गई यह क्या सुबह तो इन्होने मना किया था कि पीहर गई तो हमेशा के लिए वहीं रहना और अब यह परिवर्तन और तो और माँ जी स्वयं मुझे छोड़ने जा रही है। बहु पुनः बोली मेरी ननद जी आएगी तब आप सारा कार्य कैसे करेगें। सास बोली बेटी उसकी चिन्ता मत कर वों नहीं आ रही। सास अपनी बहू को लेकर पीहर रवाना हो गई। जैसे ही वह उसे छोड़कर रवाना हुई और घर पहुँची कि फोन की घण्टी बजी उन्होने देखा तो पाया कि वह उसकी बेटी का फोन था। वह बोली माँ मेरी सासू माँ मान गई है मैं कल आपके पास आ रही हूँ। माँ ने कहा कल तो तुने…। माँ अपनी बात पूरी कर पाती इससे पहले ही बेटी बोल पड़ी माँ मैं सही कह रही हूँ। माँ ने कहा बेटा तेरी सासू माँ …। बेटी ने कहा उन्होने ही मुझे स्वीकृति दी है। मुझे सासू माँ के कल के रूख पर विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसने मुझे हमेशा बेटी के समान माना वो एकदम ऐसी कैसे हो गई। उनके रूख में परिवर्तन कैसे लेकिन आज उन्होने उस बात के लिए खेद प्रकट करते हुए कहा कि बेटी तुम जाओ मेरी बहन नहीं आ रही है आदि-आदि।

बेटी ठीक रक्षाबन्धन के दिन माँ के पास पहुँच गई। दोनों बहुत खुश थे। उधर जब बहू को मालूम हुआ कि ननद जी आई हुई है तो एक दिन बाद वह भी ससुराल के लिए रवाना हो गई। जब बहू ससुराल पहुँची तो सासू माँ हैरान रह गई। उन्होने बहू से कहा बेटा मैंने तो मुझे कुछ दिन रूकने को कहा था तू इतनी जल्दी कैसे आ गई। बहू बोली मांजी मैने मेरी शादी के समय ननद जी को देखा था। मुझे उनसे मिलना जो था। सासू बहुत प्रसन्न हुई उसने बहू को गले लगा लिया और कहा मेरी एक नहीं दो बेटियाँ है।

यहाँ इस घटना से यह सिद्ध हो गया कि कर्म बहुत बलवान होता है। हम जैसे दूसरों के साथ करते हैं कर्म ठीक वैसा ही हमारे साथ करता है। कभी तुरन्त कभी बाद में फल तो मिलता ही है। बहू को भी बेटी के समान ही मानना चाहिए हमेशा यह सोचकर व्यवहार करना चाहिए कि बहू भी किसी की बेटी है। जैसी स्वतन्त्रता हम बेटी को देते है वैसी ही बहू को मिल जाए तो घर में सास बहू की तकरार हमेशा के लिए खत्म हो जाए। घर स्वर्ग बन जाए। मुझे विश्वास है कि हमारे देश में अधिकतर सास बहू व बेटी को समान ही मानती है जो अपवाद है उनके लिए यह घटना समर्पित है।

संजय कुमार जैन

संजय कुमार जैन

व्यवसाय - शिक्षक (राजकीय विद्यालय) रूचि - पर्यावरण, चेतना व लेखन कार्य 298, सेक्टर 4 गांधीनगर चित्तौड़गढ़ (राज.) मो. 9214963491 ईमेल - divyasanjayjain@gmail.com