कविता

तरबूज़े में बम

सब्ज़ी मंडी में कल देखा, तरबूज़ों का ढेर,
लाल-लाल तरबूज़ा लेकर, घर पर आई हो गई देर.
ममी बोलीं, ”कल खा लेना, देर हो गई, अब क्या खाना!”
”अच्छा” कहकर खूब नहाई, प्यार से खाया मैंने खाना.
पेपर वाले की घंटी ने, अगले दिन जब दी आवाज़,
झटपट उठा लिया पेपर को, पहुंची मैं खबरों के राज.
पढ़ते-पढ़ते नजर पड़ी जब, एक खबर थी बड़ी अजीब,
तरबूज़े में बम था निकला, हाय री किस्मत हाय नसीब!
बड़ी खोज-बीनकर लाई थी मैं, तरबूज़ा यह छोटा-सा,
गारंटी थी लाल होने की, पर यह हो सकता खोटा-सा.
मैं ममी से जाकर बोली, ”फेंको ममी, यह तरऊज़,
इसमें भी बम हो सकता है, कभी न लाऊंगी अब तरबूज़.
ममी बोलीं, ”चल हट पगली, सब में बम होता है क्या?”
लेकिन मेरी ज़िद्द के आगे, ममी की चल पाती क्या?
घर के बाहर उसको फेंका, खिड़की पर जा बैठी मैं,
सोचा कोई ले जाएगा, मन में खूब हंसी थी मैं.
उसे उठाना दूर रहा पर, पास भी कोई फटका नहीं,
नज़र बचाकर चले गए सब, ऐसा तो कभी हुआ नहीं.
लगता था अखबार सभी ने, आज पढ़ी थी ठीक तरह,
तरबूज़े वालों की हालत, कैसी होगी आज सुबह!
जल्दी-जल्दी खाना खाकर, देखा अब वह वहां नहीं था,
सोचा छुट्टी मिल गई उससे, पैसों का कुछ ग़म नहीं था.
तभी अचानक छोटू आया, बोला- ”दीदी, देखो घर के पीछे,
तरबूज़े के नीचे थी यह चिट्ठी, इसमें लिखा है- ”खूब बचे.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “तरबूज़े में बम

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीया बहनजी ! आये दिन बम विस्फोटों की श्रृंखला से विस्फोट में प्रयुक्त सामग्री के प्रति संदेह बना रहता था । ऐसी ही अवस्था से दो चार होती आपकी रचना बड़ी मनोरंजक लगी । अति सुंदर रचना के लिए आपका हॄदय से धन्यवाद !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अब तरबूज तो डर कर ही खाना होगा लीला बहन , सुन्दर रचना .

  • लीला तिवानी

    यह लगभग 30 वर्ष पूर्व तरबूज़े में बम खबर पर आधारित कविता है. इसमें कुछ-कुछ हास्य-व्यंग्य भी सम्मिलित है.

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय लीला बहन जी,
      अखबार पढ़ने से लगता है चारों और अशांति है युद्ध जैसा माहौल है । अच्छी कविता

      • लीला तिवानी

        प्रिय रविंदर भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. अखबार पढ़ने से लगता है चारों और अशांति है युद्ध जैसा माहौल है. हमने भी आपकी राह पर चलना शुरु कर दिया है. सकारात्मक कविताएं और लघुकथाएं इसलिए लिख रहे हैं, कि लिखने की आदत भी बनी रहे और सकारात्मकता भी बरकरार हो. इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

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