ब्लॉग/परिचर्चा

सदाबहार काव्यालय-27

कविता
तू ज़ीरो बनके देख ज़रा

 

तू ज़ीरो बनके देख ज़रा
ज़ीरो को कहीं से भी देखो
ज़ीरो ही नज़र वो आता है,
ज़ीरो है ऐसा अंक जिसे
घटना-बढ़ना नहीं आता है,
तू उसकी महिमा समझ ज़रा
तू ज़ीरो बनके देख ज़रा.

 

लगे किसी अंक के दांएं
दस गुना उसे कर जाता है
यों तो उसका अस्तित्व नहीं
फिर भी वह मान बढ़ाता है
तू सोच-समझकर देख ज़रा
तू ज़ीरो बनके देख ज़रा.

 

तू लगे जो एक(प्रभु) के दांएं
रुतबा तेरा बढ़ जाएगा
लग जाए अगर तू बांएं
संसार से तू जुड़ जाएगा
तू दांएं लगकर देख ज़रा
तू ज़ीरो बनके देख ज़रा.

 

ज़ीरो बनने से डरता क्यों?
मरने से पहले मरता क्यों?
हीरो तो सब बनना चाहें
कुछ अलग-सा तू ना करता क्यों?
खुद को पहचान के देख ज़रा
तू ज़ीरो बनके देख ज़रा.

 

लीला तिवानी

Website : https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “सदाबहार काव्यालय-27

  • राजकुमार कांदु

    वाह ! बहुत खूब ! आदरणीय बहनजी ! शून्य की महिमा से कौन नहीं परिचित होगा । अकेला शून्य भले ही कोई कीमत न रखता हो लेकिन जिस किसी भी अंक के दाईं तरफ लग जाये उसकी शक्ति दस गुणा बढ़ा देता है । और अगर दो शून्य साथ ही मेहरबान हो जाएं तब तो सौ गुना और तीन शून्य साथ आ जाएं तो वह हजार गुना ताकतवर हो जाता है । यह मेल का ही प्रभाव है । ऐसे प्रभावशाली शून्य की महिमा का वर्णन कर आपने एक प्रेरणा दी है । अति सुंदर रचना के लिए धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर कविता लीला बहन .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. सब आपकी दुआओं और सहयोग का प्रतिफल है. इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    ज़ीरो यानी शून्य बनके रहने का आनंद कुछ अलग ही है. इससे निर्विकारिता आ जाती है.

Comments are closed.