लघुकथा

लघु कथा – ‘शक़’

”आ गए गुलछर्रे उड़ा कर” दरवाज़ा खोलते ही रूचि ने व्यंग्य से रोहन को बोला”.
”ये क्या कह रही हो ?”
”ठीक ही तो कह रही हूँ। मिस्टर रोहन, बहुत हो चुका अब चुप चाप बता दो की उस लॉज में तुम किससे मिलने जाते हो? और मुझसे कहते हो की ऑफिस में कार्य भार बढ़ गया है! नहीं रोहन नहीं,…..मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद ना थी!” इतना कह कर रूचि जोर जोर से रोने लगी.
‘अरे मेरी बात तो सुनो !!’
”कुछ नहीं सुनना मुझे, अब बाक़ी क्या रह गया? तुमने मुझसे झूठ बोला।”
‘मैंने तुमसे कोई झूठ नहीं बोला”
‘आज मैं तीन दिनों से तुम्हारा पीछा कर रही हूँ, तुम लॉज़ में जाते हो और दो घंटे बाद निकलते हो… बोलो रोहन बोलो,…और तुम्हारे हाँथ में वो दवाइयां। छी छी… मैं तो सोच भी नहीं सकती तुम इतने नीचे गिर सकते हो! अब मुझे नहीं रहना तुम्हारे साथ, मैं जा रही हूँ”! इतना कहकर रूचि उठ खड़ी हुई.,गुस्से से लाल पीली होती वह अपना अटैची हाँथ में लिए घर से बाहर निकलने लगी तभी रोहन झट से आगे बढ़ रूचि का हाँथ पकड़ लिए!
”अरे रूचि सुनो तो तुम्हे कहीं जाने की जरुरत नहीं, पहले तुम अपना गुस्सा थूको।’
‘तुमने मुझे समझ क्या रखा है? छोड़ो मेरा हाथ,जाने दो मुझे।’
‘ठीक है जाओ पर मेरे साथ!’
‘तुम्हारे साथ नहीं जाने वाली।’
”चलो तो” रोहन रुचि को ले सीधे लॉज़ पहुंचा। ‘देखो इन्हे, मिलो इनसे!’
एक बहुत ही बुज़ुर्ग महिला बिस्तर पर लेती हुयी थीं. ‘ये कौन है बेटा?’ एक बहुत ही धीमी आवाज़ आयी।
‘ये मेरी पत्नी है माँ, रूचि।’
माँ। …..रुचि अचानक ही घबरा गयी! उसके समझ कुछ नहीं आ रहा था!
‘जिसे तुम कुछ और समझ रही थी, ये वो माँ है जिन्होंने मुझे जिंदगी दी है।’
”क्या”?
‘हाँ रूचि बीस साल पहले जब मेरा दोनों किडनी खराब हो गयी थीं और डॉक्टर ने तुरंत दूसरी किडनी लाने को कहा तब स्वेच्छा से इन्होने मुझे अपनी एक किडनी दे दी थी ! और आज इनकी दूसरी किडनी खराब हो चुकी है! इनके बेटा बहू इन्हे यहाँ अकेले छोड़ अमेरिका में है! अब तुम्हीं बताओ रूचि मुझे जिंदगी देने वाली माँ, इनको मैं कैसे अकेले छोड़ सकता हूँ?’ इतना कह कर रोहन की आँखे डबडबा गयी !
‘तो क्या तुमने मुझे इतना गिरा हुआ समझ लिया जो तुम इन्हे लॉज़ में रखे हो। तुम कैसे बेटे हो? क्या तुम्हे मुझ पर भरोसा नहीं था? अभी तुरंत माँ जी को साथ लेकर घर चलो. मैं इनकी देख रेख करुँगी।… और हां रोहन मुझे माफ़ कर दो। मैंने बेवज़ह ही तुम पर शक किया!!’

मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- manidwivedi63@gmail.com