कविता

आत्मा मेरे मन से क्या कह रही है

लायक नहीं ये दुनिया उनके लिए जो
हारने का शौक ना रखते हो ” संघर्ष ”

खैर तुमसे तो ये डर नही मुझे क्योकि
खो कर ही पाये हो तुम यहां हर हर्ष

मुकम्मल नही उनकी जिंदगानी यहां
खाली हो जिनका जुबानी तरकश

हैरान हूं तेरी मानवता से मैं इतनी
कि गवां बैठा तू जालिमो में अपना सर्बश

विवेक को तेरे , उनके अभिमान ने दबाया
और ज्ञान हुआ तेरा दादुर के कंठो में कर्कश

ना रमा , ना मिली उमा तुझे सोहरत से
जो संजोया था वो भी हुआ सब कुर्क

हैरानी इतनी सी है मुझे कि वो खुश है
जो तकलीफों में तेरी साथ होते थे हरदम

निठल्ली बना ले अपनी जिद से इतनी मुझे
ताकि खोने के डर से ही रुला दूं उन्हें बरबस

बिंदु हूँ एक , जो कोई भी आकार ले लूं
बता उनसे जो पहले से ही बने हो वर्ग

संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”
08/01/2018
रात्रि 11 बजे

संदीप चतुर्वेदी "संघर्ष"

s/o श्री हरकिशोर चतुर्वेदी निवास -- मूसानगर अतर्रा - बांदा ( उत्तर प्रदेश ) कार्य -- एक प्राइवेट स्कूल संचालक ( s s कान्वेंट स्कूल ) विशेष -- आकाशवाणी छतरपुर में काव्य पाठ मो. 75665 01631