गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अब किसी से भी मुहब्बत नहीं कर पाउँगा ।
प्यार आता है , सियासत नहीं कर पाउँगा ।

जाने अनजाने में दिल टूट गया तेरा गर
जिंदगी भर मैं नदामत नहीं कर पाउँगा ।

प्यार बस एक दफा तुमसे हुआ था मुझको
अब किसी और से चाहत नहीं कर पाउँगा ।

इस कदर टूट गया हूँ मैं तिरी चाहत में
अब कभी भी मैं रवायत नहीं कर पाउँगा ।

बन्दगी आप की करनी है हमेशा मुझको
अब खुदा की भी इबादत नहीं कर पाउँगा ।

बेवफा नाम मुहब्बत में भले मिल जाये
“धर्म” रिस्तों से बगावत नहीं कर पाउँगा ।

— धर्म पाण्डेय