सामाजिक

लेख– युवाओं को दिग्भ्रमित होने से बचाना समाज का कर्तव्य

एक तरफ़ हमारी सरकार आतंककवाद की क़मर तोड़ने को प्रयासरत है, वहीं दूसरी ओर देश के कुछ युवा दिग्भ्रमित होकर आतंकवाद की शरणों में जा रहें हैं। जो देश के लिए चिंता का विषय है। आज देश का युवा अपनी राहों से भटक रहा हैं। युवाओं के गुमराह होने का कारण मानसिक तनाव के साथ सामाजिक और आर्थिक तनावग्रस्तता भी हो सकती है। इस तरीक़े से युवाओं में भटकाव कहीं न कहीं साबित करता है, कि हमारी शिक्षा-प्रणाली में भी खोट आ गया है, क्योंकि हम गांधी और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों के विचारों से युवाओं को अवगत न कराकर सिर्फ़ व्यवसायिक शिक्षा पद्धति पर जोर दे रहें हैं। जिसके कारण भी युवाओं का सामाजिक विकास अवरुद्ध होता जा रहा है। साथ में अगर शिक्षा रोजगार देने योग्य भी नहीं बन पा रहीं, तो युवाओं का मन उद्देलित तो होगा, शायद उसी का फ़ायदा इस तरीक़े के खतरनाक मंसूबे रखने वाले गुट उठा रहे हैं, यह हमारी व्यवस्था को समझना होगा। देश के कुछ युवा अपनी राहों से इतर क़दम उठा रहे हैं, इसका सबूत अभी हाल में सोशल मीडिया पर वायरल हुई फ़ोटो से लगाई जा रही है। जिसमें एक नवयुवक को हाथों में एके-47 लिए देखा जा सकता है। माना जा रहा है, कि एके-47 हाथ मे लिया हुआ छात्र अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का मन्नान वशीर वानी है, जो हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी संगठन में शामिल हो गया है। वैसे किसी युवा के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की यह कोई पहली घटना नहीं है। कुछ दिन पूर्व ही माजिद अरशीद नाम का युवा भी आतंकी गुट में शामिल हो गया था, जो बाद में अपनी माँ की अपील पर वापस घर लौट आया था।

इसके पूर्व भी मुंबई के चार युवक इस्लामिक स्टेट में शामिल हुए थे। सबसे गौर करने वाली बात यह है, कि आतंकी गुटों में शामिल होने युवाओं का फ़र्क़ न देश के आधार पर बचा है, न रंग, न धर्म और न भाषा के आधार पर। दिसंबर 2015 में दिल्ली के दो छात्र अलकायदा के साथ जुड़े , जिसकी जानकारी दिल्ली पुलिस ने साझा की थी। इसके अलावा सितंबर 2014 में हैदराबाद की एक युवती का आईएस में शामिल होने की घटना ने पूरे देश को हैरत में डाल दिया था। जिसके साथ 15 अन्य युवा भी शामिल थे। आतंकी संगठन में शामिल होने वाले युवा किसी एक देश केे नहीं हैं, अब यह पेशे का रूप धारण करता जा रहा है। साथ मे कोई भी संगठन बिना युवाओं के चल नहीं सकता, फ़िर उसका इरादा चाहें नेक हो, या बुरा। इसलिए आतंकी संगठन युवाओं को अपनी फ़ौज में शामिल कर रहें हैं। जिसके लिए आतंकी संगठन के आका धर्म, जाति के नाम की ऐसी साम्रगी पेश करते हैं, जिससे युवा दिग्भ्रमित होकर हथियार उठाने को मजबूर हो जाएं।

भारत में आतंकी गुटों की जड़ें काफ़ी लंबे वक्त से फ़ैली होने के कारण आज अपने भयावह रूप में सामने दिख रहीं हैं। आज देश के युवा सिर्फ़ पाकिस्तान में पल रहें आतंकी संगठनों से ही नहीं जुड़ रहें, बल्कि आईएसआईएस जैसे संगठन से भी जुड़ रहें हैं, जो कि वैश्विक स्तर पर ख़तरे की घन्टी का बजना है। युवाओं का आतंकी गुटों की तरफ़ झुकाव का मुख्य कारण इंटरनेट पर अतिवादी विचारों का प्रवाह है, जिसके माध्यम से युवाओं को धर्म- जाति आदि के माध्यम से उकसाया जा रहा है। युवा इसलामिक स्टेट के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। शुरुआती मनोधारणा लोगों की यहीं थी, कि गरीबी युवाओं को आतंकी बनने के लिए विवश कर रहीं हैं, लेकिन जब अब पढ़े-लिखे युवा भी आतंक की ख़ूनी दास्ताँ लिखने के लिए हथियार उठाने से नहीं हिचक रहें, फ़िर क्या माना जाए? इसका सीधा और सरल निष्कर्ष यहीं है, कि ये आतंकी संगठन अपनी खतरनाक खेती का बीज इन युवाओं के मस्तिष्क में बोने में सफ़ल हो रहें हैं।

इंटरनेट का बढ़ता दायरा, परिवारिक सामंजस्य की कमी, और सामाजिक, आर्थिक दवाब के साथ नैतिक विचारों का क्षीण होना भी इन खतरनाक फ़ितूर को जन्म देने में काफ़ी है। इन खतरों के दायरे को बढ़ता देख देश, समाज औऱ परिवार को सचेत होना पड़ेगा, जिससे उनके आसपड़ोस के नवयुवक इन गलतफहमी से दूर रहें, आतंकवाद का रास्ता अपनाना किसी समस्या का हल नहीं। यह युवाओं के दिमाग में समाज औऱ व्यवस्था को डालना होगा। इसके साथ समझाना होगा, आतंकवाद वह दलदल है, जिसमें फंसा व्यक्ति आजीवन उससे छुटकारा नहीं पा पाता, यह बात परिवारिक और सामाजिक परिवेश के युवाओं को बताना चाहिए। हिंसक और चरमपंथी विचारों से ग्रषित युवाओं को सही दिशा में लाने के लिए सरकार अपने स्तर पर प्रयासरत है, ऐसे में समाज को भी गंभीरता से सोचते हुए अनुकूल वातावरण बनाने की दिशा में अग्रसर होने की जरूरत है, ताकि विध्वंसक विचारधाराएं युवाओं को अपने चंगुल के आगोश में न समेट सकें। समाज के लोगों को आतंकवाद जैसे समाज और देश के लिए नासूर बन रहें विषयों पर खुलकर बहस करना चाहिए, जिससे उसके मुखोटे खुलकर सामने आ सकें, और युवा उस तऱफ आकर्षित न होकर घृणा करने लगे। समाज और परिवार के सार्थक प्रयासों द्वारा हम अपने समाज के नवयुवकों को इन खतरनाक विचारों से ग्रस्त होने से बचा सकते हैं।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896