कविता

खुदगर्ज !

पाषाण, अस्थिर पल पल बदलती,
उन रिक्त नैनो से रह रह झलकती !
शून्य से थमती उभरती धड़कते भी ,
अब हो चुकी है यूं
बोझिल उनकी शक्ति!
कभी उम्मीदों का दामन थामे वो बेजान तन,
नस नस में दोड़ती फिर सैंकड़ो आहें मचलती !
तुम्हारी खुदगर्जी और अपनों के वाण छलनी करते मन मस्तिष्क भी ,
बुना न दे बेजान उस बुत को जिसमें जीने की आस सिसकती!
बड़ा लो कदम तुम अब बस फायदा और नुकसान की न सोचो ,
न वापिस मिलेंगे वो पल क्योंकि उम्र पल पल जाए ढलती !
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

2 thoughts on “खुदगर्ज !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर रचना .

    • कामनी गुप्ता

      धन्यवाद सर जी !

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