लघुकथा

रिश्तों की गर्माहट

आज सुगंधा की रिटायरमेंट की पंद्रहवीं सालगिरह है, लेकिन उस दिन की स्मृतियों और रिश्तों की गर्माहट को वह पिछले पंद्रह साल से एक पल को भी नहीं भुला पाई थी.

 

वह तब भी अकेली थी, आज भी अकेली है, लेकिन पड़ोस में रहने वाली दीप्ति और उसके परिवार ने उसे कभी अकेलापन महसूस होने ही नहीं दिया. उस दिन भी सुगंधा ने अपने ऑफिस में किसी करीबी रिश्तेदार के न होने पर रिटायरमेंट पार्टी के लिए दीप्ति और दीपेश का ही नाम लिखवाया था. ऑफिस वालों ने दोनों को फोन पर आमंत्रित कर दिया था. फिर तो दीप्ति और दीपेश ने सुगंधा की रिटायरमेंट के जश्न को जितना भव्य बना दिया था, उसकी कल्पना सुगंधा कभी कर ही नहीं सकती थी. समूचा प्रबंध एक सुखद सरप्राइज़ के रूप में ही हुआ था. सबके चले जाने के बाद भावाभिभूत होकर सुगंधा ने दीप्ति को गले से लगाकर कहा था-

”दीप्ति, जो कुछ आप लोगों ने किया, उसके लिए कोटिशः धन्यवाद, पर इतना सब करने की ज़रूरत ही क्या थी?’

”दीदी, आप ही तो कहती हैं- ”रिश्तों की गर्माहट” को कभी ठंडा नहीं होने देना चाहिए, बस उसी गर्माहट को बनाए रखने का एक छोटा-सा प्रयास किया था. रिश्तों की यही गर्माहट आपके जीने का संबल बनेगी.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “रिश्तों की गर्माहट

  • लीला तिवानी

    समय-समय पर आने वाले त्योहारों पर मिलना-जुलना भी रिश्तों की गर्माहट को बनाए रखता है. आप सभी को मकर संक्रांति, पोंगल, माघी, उत्तरायण और बिहू का त्योहार मुबारक हो.

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