लघुकथा

समय की सुन्दरता

“पुराना कम्बल ही हमें देने लाती न बिटिया!”
“क्यों! ऐसा आप क्यों बोल रही हैं? दान भी दें और कुछ साल ढ़ंग का हो भी नहीं तो वैसे का क्या फायदा”
“ये हमारे पास कल रहेगा कि नहीं तुम क्या जानो?!”
“क्क्क्या ?”
“तुमलोगों के जाते हमसे छीन लिया जायेगा और बेच दिया जायेगा!…”
“कौन करता है ऐसा?”
“इसी आश्रम का केयर-टेकर”
“क्या आप मेरे मोबाइल के सामने इसी बात को दोहरा सकती हैं ?”
“कल से फिर … ?!”
वृद्धाश्रम में वृद्धाओं और संगठित महिला दल से वार्तालाप चल ही रही थी कि वृद्धाश्रम के केयर टेकर को कैद में लेकर युवाओं का दल अंदर आ गया… संगठित महिला दल की एक सदस्या मोबाईल से लाइव टेलीकास्ट कर रही थी…

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “समय की सुन्दरता

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर कथा विभा जी . समय आगे बढ़ रहा है और जागरूपता भी .बेईमान लोगों का पर्दाफाश होना चाहिए .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      जी भाई
      आभरी हूँ आपके सुझाव के लिए

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