कविता

उसने ही सच्चा सुख पाया

यह दुनिया दुख का सागर है,
सुख कहां मिला और किसे मिला!
यहां केवल कष्ट उजागर है,
है केवल शिकवा और गिला.

 

सुख है पर जैसे मृगतृष्णा,
है केवल भटकन-ही-भटकन,
बचपन बीता, यौवन भागा,
पर अब तक मिली न सुख-झलकन.

 

प्रातः की आशा रह सकी,
दोपहर का दर्प भी दमित हुआ,
संध्या की स्वप्निल छाया से,
जीवन सपनीला नहीं हुआ.

 

धरती पर धैर्य नहीं पाया,
अंबर पर कुछ क्षण मस्त हुए,
फिर अंतरिक्ष पर जा पहुंचे,
पर अंत में हौसले पस्त हुए.

 

निर्धन तो दुख में हैं डूबे,
धन वाले भी सब व्याकुल हैं,
मध्यम वर्ग भी बेहाल पड़ा,
सब लगते हर पल आकुल हैं.

 

जैसे कांटों में फूल छिपे,
वैसे दुख में सुख की छाया,
जिसने दुख को ही सुख माना,
उसने ही सच्चा सुख पाया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “उसने ही सच्चा सुख पाया

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , कविता अछि लगी .इस संसार में सुखी रहना भी एक आर्ट ही है वरना ” नानक दुखिया सब संसार “

  • लीला तिवानी

    दूसरों को खुशी देकर देखो,
    अपने हिस्से की खुशी आपको अपने आप मिल जाएगी.

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