कविता

भूख

 

जाति,धर्म, संप्रदाय
से कोसों दूर
पेट की सिलवटें
तैयार करती ‘भूख!’
बहुत निर्दयी है
हवा की तरह है
ये भूख
अदृश्य !
छू नहीं सकते
केवल महसूस कर सकते हो
गरीब के ईर्द-गिर्द
सदैव उपस्थित रहती है
तब तक ?
जब तक जान ना ले ले!
ठिकाने हैं इसके
झोपड़पट्टी में,पुल के नीचे
छप्पर में,फुटपाथों पर
एक दिलचस्प बात
भूख की!!
ये उम्र का लिहाज़
नहीं रखती

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733